कंब रामायण | Kamb Ramayan
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
604
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)5৬০5 ११
है उन्नत से भी उन्नत कंधोवाले । तुम उस वायुदेव के प्रिय पुत्र हो, अतः
मेने प्रेम से प्रेरित होकर तुम्हारा अन्य कोई उपकार न कर सकने के कारण यह सोचा कि
यदि तुम मेरे स्वरणं-शिखर पर (कुछ समय ) विश्राम कर लो, तो मै धन्य हो जाऊँगा।
हे न्याय पर ट्ठ रहनेवाले ! जलनिधि ने सुसर कहा करि वायुदेव का प्रिय
पुत्र देवताओं के उद्धार के हेतु कालमेघ-बर्ण (राम ) की आज्ञा से सीता का अन्वेषण
करता हुआ थ रहा दै | अतः, ठम अनन्त अंतरिक्ष म उठ जाओ ( जिससे वह तुम पर
विश्राम कर सके ) | इससे वढकर सौभाग्य की वात दूसरी क्या हो सकती है}
मालः से अलंकृत स्वेणंमय विशाल वद्चवाले ! तेम यह जानो कि यह जन
तुम्हारे लिए माता से भी अधिक हितकारी है। अभी कुछ क्षण सुकपर विश्राम হী |
मैं यथार्शक्ति तुम्हारा जो सत्कार करता हूँ, उसे स्वीकार करो। बशुजनो का यह कर्तव्य
होता है कि वे अपने यहाँ आये हुए प्रियजन का सत्कार करें [--इस प्रकार मेनाक ने
हंदय-पूर्वंक वचन कहे ।
सुगंधित कमल-सदश काति-पूणं वदनवाले वीर ८ हनुमान् ) ने ये बचन सुनकर,
उमे निष्करलयुप जानकर महास किया ¡ सुस्कराकर जव वह अपनी विशा म जाने लगा, तव
इतने मे उम पत के अच्ुत्रत स्वर्ण-शिखर को अपने निक्रर देखा |
४ मैं थका नही हूँ। इसका कारण मेरे सरक्त्क भगवान् (राम) की मेरे
ऊपर करुणा ही है। जबतक मेरे सन का सकल्प पूर्ण न हों, तबतक में कुछ भी नहीं
खाऊेंगा। अमृत-धारा के प्रवाहो से भरे हुए तुम्दारे मन से जब मेरे प्रति प्रेम उत्पन्न हो
गया, तभी मैने ( त्रम्दारे पास ) विश्ञाम पा लिया। भोजन भी पा लिया | इससे बढ़कर
अब तुम्हारा दूसरा कत्तंब्य क्या होगा १
याचको की इच्छा को पूर्ण करते हुए--उत्तम दाता, मध्यम दाता तथा
अधम दाना--सब प्रकार के दानियों में जो गुण समान स्प से रहता है (अर्थात्;
प्रेम ) वही सर्वश्रेष्ठ सत्कार है। वही प्रेम अस्थियों से भी बढ़कर शरीर का हद आधार
होता है। उस अस्थि को भी दान करने की प्रेरणा दनेवाले प्रेम से बढ़कर श्रेष्ठ सत्कार
और क्या हो सकता है १
में अब शीघ्र ही ( च्रिकूट ) पर्वत पर स्थित लक्का मे जा पहुंचूंगा। बढि में
स्वामी की माना को दक्षता के साथ पूरा कर सकूँगा, तो (लका से) लौटकर दुम्हारे सत्कार
को जामेच्छे भोज को-स्वीकार कर्रँगा |” यह कहकर उस नत्वत्रत ( हनुमान् ) ने
मेनाक थे आजा लो और आगे चला। मनाक की दृष्टि तथा यक्मा भी उसका अनुगमन करती
गुर उसके पीछेन्पीछे অজী।
ডি সঃ অ্দক্বিত (জুত্ত ), शीतल द्मा, देवौ ये विमान. नन मेव तथा
जिमिष पदार्थ ( हनुमान के गमन-वेग के कारण ) एक होकर मिल गये |
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