संगम और संघर्ष | Sangam Aur Sangharsh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.32 MB
कुल पष्ठ :
175
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साहित्य में शेतिहसिक यथार्थवाद १
भारत में राणा प्रताप श्रौर शिवाजी भी जन-नायक थे, जो साम्राज्य से
जनता को लेकर लड़े थे । पर साथ ही हमें यह भी देखना पड़ेगा कि उनकी
कमियाँ कया थीं । वे ब्राह्मणों के सामने पूर्णतया पराजित थे, क्योंकि
सामन्तीय व्यवस्था के बन्घन थे, श्रादि ।
रूस के अनुभवों, 'वीन के प्रयत्नों ने हमारे सामने बड़े रास्ते खोल
दिए हैं । कवि किस्मानी की स्वातन्त्यप्रियता श्राज के कवि के लिए भी
सम्माननीय वस्तु है ।
कला के सत्र में श्रविकृत श्रीर विकृत चित्रण का ऐतिहासिक यथार्थ-
वाद में बड़ा महत्व है । श्रविकृत कहते हैं उस चित्रण को जिसमें तत्का-
लीन समाज का वास्तविक चित्रण किया जाता है । विक़ृत उस चित्रण को
कहते हैं जिसमें तत्कालीन समाज के चित्रण में श्राघुनिक दृष्टिकोशों को
ही एक-मात्र पैमाना बना लिया जाता है श्रौर पुराने पात्रों के मुख से
आधुनिक लेखक बोलने लगता है । उदाहरण के लिए, राहुल सांझत्यायन
के ऐतिहासिक उपन्यासों में दिशा-काल को मेदकर श्रमूमन एकाध मार्क्स -
वादी फात्र होता है । बह ऐसी बातें कर जाता है जो तत्कालीन समाज के
समय के पिंतन को श्रागे व्यक्त नहीं करता, वरन् श्राधुनिक किचारों को
प्रतिनिधित्व करने लगता है । यह उचित नहीं है । लेखक अपने को इति-
हास पर लाद देता है । राहुल में यह दोष है कि उनमें कला पक्ष को
श्रमाव है, केवल पाशिडत्य का बोक है ।
जितना इतिहास का झ्राघार ठोस होता है उतना ही कला पन्न को
निखार लाने का भी श्रबसर होता है । यशपाल की 'दिव्या' एक सफल
रचना है । उसके पात्र श्रपमे युगानुसार ही बातें करते हैं । यशपाल को
बहुत-कुछ स्वयं कहना है । उन्हें इतिहास का वैज्ञानिक विवेचन भी करना
है। वे यह सब करते हैं पर सन्तुलन के साथ । यशपाल का कलापद्ष
'दिव्या' में बहुत ही मँजा हुआ है । यशपाल की “दिव्या' में बोद्ध-समाज
पर गहरा प्रहार मिलता है, पर पढ़ने में कहीं नहीं मालूम प्रक़ता कि लेखक
User Reviews
No Reviews | Add Yours...