स्वानुभवसार | SwanubhavSar

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SwanubhavSar by पंडित गोपीनाथ - Pandit Gopinath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका | (५) तै आत्मानुभय हेष नष्टौ ऐसे कहि करिके मेरे उत्कंट जिज्ञासा जाशि- करिके शोर मेरी बुद्धि को परीक्षा करिके और सेके आत्सेपदेशके अधि- कारो जाणि करिके ऐसो विलक्षण प्रक्रियातिं उपदेश किये कि च -येषडे ही समयसें कृताधेत।कूँ आस दवा गया काहतें कि उनमें केवल गद्वत ठे करिकं उपदेश कयि शरोर एमे पद्ये परमात्मभिन्नता करिके तो श्रसिट यरंन किये शरोर परमात्मरूप करियर सिट किये. रोर मतवादिर्यो को करुपनावों का खण्हन करिके श्रुति हृदयाथेके अनुकूल अनुभव प्रका- शित किये । ` रसै षे महात्मा सरबंत ९९२२ से भेक आ्रास्मविद्या कराय करि“ लब याच्रा करणे, उस्करिदत भये तब मैंने प्रः्येता किईद ছি সম বড कट! कत्तव्य है से रुपा फरिक कहे तब उननें आज्ञा किदे कि सङ्गः सवौत्यना हेयः सचेद्धातुं न शक्यते - ससद्धिः सह कन्तैव्यःसन्तः सङ्गस्य भेषजस्‌ ॥९॥ जोर ये कही कि अन्ञपरवोधान्नेवाऽन्यत्कायंमस्त्यत्र तदिदः ॥ शुनका अथेथेहिकिसङ्कष्या हैते सथयेथा त्याग करवै येग्य है कर ज्यो इसका त्याग नहाँ हा सकैत थे सत्पुरुष के साथ कत्तव्य है काहे तें कि उनका सड्भू व्योहैखे सङ्क यु निशत करिह 3 शरोर সান ইল্লা জী भात्मन्नान करायमे क्षँ भिन्न काय नहीं है पे आज्ञा करिक षे हास्मा ते प्रस्थान करगये । : पौ में सम्बत्‌ ९९३९ पर्यन्त ते उनकी प्रथम झाज्ञा. का पालन कर- सा रहा अभात्‌ सत्सद्ध करता रहा से एसे एसे सहात्माओं का दृर्शन हुवा कि जिनके शुकदेव बामदेव अवक्र दत्तातेय ही कहर धाहिये पौ स- वस्‌ ९९४० च मेकं द्वितीय आज्ञा का स्मरण हुवा ओर उसहो वष रा-, जाजी साहब खेतदी श्रौ ९०८ अज्नितरि ही वदुर जिन्न उपस्थित भये तब उनके रपदेश के अर्थ ते उपदेशाहत घटी नाम ग्रन्थ को रचना किर उसमें गान के पदों से श्री गीताभावाये प्रस्फुट किया है ॥ । पी सस्वत्‌ ९९४९ मैं सेरै यह विषा९. हुषा कि जिनको बुद्धि सरल है ओर




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