गीतावली - गुंजन | Geetwali - Gunjan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ ) अवधी फा मिश्रण पाते हैं । तुलसीदासजी की अवधी और प्रज-भाषा ' पर गंभीर दृष्टि डालने से साफ लक्षित होता कि इन्होंने दोनों को साहित्यिक ढाँचे में ठालने का उद्योग किया है। अवधी इनके पहले साहित्यिक क्षेत्र से दूर थी । उसमें ठेठ रूप की मिठास थी, इसलिये उसमें सुधार फरके उसे साहित्यिक रूप देने के लिये विशेष उद्योग की आवश्यकता थी। संस्कृत की फोमल-कांत - पदावली का अज्ुकरण तुलसीदास ने अपनी अवधी में जगह-जगह किया है। पर तुलसीदास के पश्चात्‌ अबधी भाषा में कोई ऐसा कवि नहीं हुआ जो इनकी जमाई ह परिपाटी फो व्यवस्थित रूप से श्ागे ले चलता । इसीलिये अवधी भाषा सामान्य कान्य-भापा नदीं हो सकी । एकं चार उसका उत्थान हुआ और वह थोड़ा-सा विकसित होकर ही रह गया । - ब्रजभापा के संबंध में यह बात नहीं थी। उसे ' काव्योपयुक बनाने के लिये उद्योग नहीं करना था, चद पहले से ही भेजी भेजा चली आ रही थी। केवल उसे छ स्थिरता ` देने की ` आवश्य कता थी और फेवल ब्रजग्रांत ॐ शब्दों का सदारा न लेकर सभी स्थानों में प्रचलित शब्दों का अयोग करने की आवश्यकता थी। और, इस प्रकार भाषा को सबके योग्य धना देने से ही प्रज-माषा का महत्त्व बदू' सकता था। फेवल ब्रज-आ्रंतः के कठघरे में बंद रहने से भाषा प्रादेशिक हो जाती और उपमें काव्य का निमोण सबके.लिये दुरूदद दो जाता। कवितावली और गीतावली में यही बात' दिखाई देती है । तुलसीदास ने श्रजभाषा का केवल ढाँचा-भर लिया है, उसमें बहु- प्रचलित मुद्दावरे और शब्द अन्य देशों के भी रख दिए हैं। पर इसका: यह्‌ तालस्य नहीं है कि भाषा मिश्रित करके चौपट कर दी गई है । भाषा की स्वाभाविक धारा ेसी बद्विया है. फि तुलसीदास ॐ इस: प्रयलः पर




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