प्रबन्ध पूर्णिमा | Prabandh Purnima

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Prabandh Purnima by रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आमुख द ६ यदि लेखक का विचार रस की उत्पत्ति है और उसकी शैली भावना, चित्रमयता ओर भावोद्रेक से भरी हुईं है तो हम उसे काव्यात्मक शैली कहेंगे | कवियों के गद्य में यही शैली मित्रती , ह । वास्तव में जिसे गद्यकाव्य के नाम से पुकारा जाता है, वह ` गद्य की काव्यात्मक शैली ही है । ि ३-मनोवेज्ञानिक शैली । इसमें मन की सूच्स बातों का बड़ा सूद्म, कभी-कभी उकतठा “देने वाला, विवेचना होता है। शैली में हृदयतत्तव का भी महत्वपूर्ण स्थान है। शेज्ञी ओर “व्यक्तित्व पर लिखते हुए हमने रस-स॒ष्टि को शैज्ञी का एक अंग माना हे, परन्तु रस का सम्बन्ध लेखक की रागात्मिक वृत्ति से है “इसलिये इसे असल में हृदयतत्त्त के अन्तगंत आना चाहिये। मनुष्य किसी भाव को यों ही प्रहण नहीं कर लेता, वह उससें . आनन्द लेना चाहता है। इसका प्रभाव शेली पर भी पडता हे | - सच तो यह है कि किसी घटना के वर्णन में विचार का स्थान इतना नहीं होता जितना भावलोक या वातावरण की खटिका इससे विचार को स्पष्ट करने की शैली में एक विशेष सौन्दर्यं आ जाता है| हृदयतत्तव की दृष्टि से भी शैली के कई भेद कर सकते हैं-- 3” १--भावात्मक शैली । ` । इस शैली को हम सबल ओर शिथिल भावात्मक शैलियों में बाँट सकते हैं | यदि भावना को बहुत अधिक उत्तेजित करने का प्रयत्न किया गया स्ये, चाहे निवन्ध साथ दी विचारात्मक क्‍यों न हो, तो हम उस रौली को सवल भावात्मक शैली कर्हुगे । इसके बिपरीत. शिथिल भावात्मक शैली वह्‌ दै जिसमे भावना, का छअपकषं हो, उत्कषं नहीं । २--रसात्मक रली ।




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