श्रीकान्त | Shreekant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीकान्त १७ निकट और फिर उसपर बैठा था भेडिया । हिन्दुस्तानी सिय्पटाये तक नदीं और जो छोग तमाशा देखने आये ये वे भी सनाका खींचकर रह गये | ऐसी विपत्तिके समय न जाने कर्हेसि इन्द्र आकर उपस्थित दयो गया । दायद वद सामनेके रास्तेते करटी जा रहा था ओर शोर-गुख युनकर अन्दर घुस आयां था । पठ-मरम सौ कण्ठ एक साथ चीत्कार कर ञ्ठे, “ओरे, লা ই बाघ ! भाग जा रे छड़के, भाग जा ! ? पहले तो वह हडवड़ाकर भीतर दोड़ आया किन्तु पढ-भर बाद ही, सब हार सुनकर, निर्भय दो, ओगन्मे उतरकर खाख्टैन उठाकर देखने खगा । दुम॑जटेकी चिडकियोमेषे ओौसते सेस रोककर इस साहसी रढकेकी ओर देख देखकर ‹ दुर्गा ? नाम जपने लगीं । नीचे भीड़में खड़े हुए हिन्दुस्तानी सिपाही उसे हिम्मत बेंधाने छगे ओर आमास देने छंगें कि एकाघ हथियार मिलनेपर वे भी वहाँ आनेको तैयार हैं । अच्छी तरह देखकर इन्द्रन कहा, “८ द्वारिका बावू, यह तो बाघ नहीं माछूम होता । ” उसकी बात समाप्त होते न होते वह “হাক উমা टायगर ? दोनों दाथ जोड़कर मनुष्यके ही स्वरमें रो पड़ा और बोला, “ नहीं, बावूजी, नहीं, में बाध-भाद नहीं, श्रीनाथ बहुरूपियों हूँ |? इन्द्र ठठाकर हँस पड़ा । भद्दाचार्य महाश्य खड़ारऊँ हाथमें लिये सबसे आगे दौढ़ पढ़े, ४ हरामजादे, ठुझे डरानेंके लिए. और कोई जगह नहीं मिली ? ” फूफाजीने महाक्रोघसे हुक्म दिया, “ सालेको कान पकड़कर छाओ। ” किशोरीसिंहने उसे सबसे पहले देखा था, इसलिए उसका दावा सबसे प्रबल था। वह गया ओर उसके कान पकड़कर घसीटता हुआ ले आया । ह्वाचार्य महाशय उसकी पीठपर जोर जोरसे खड़ाऊँ मारने छगे और गुस्सेके मारे दनादन हिन्दी बोलने छगे,--- इसी हगमजादे बदजातके कारण मेरी इड्डी-पसछी चूरा हो गई हैं । साले पछढ़ियोंने घूस मार मारकर कचूमर निकाल दिया । 7 श्रीनाथका मकान बारासतर्म था | वह हरसाछ इसी समय एक बार रोज़गार करने आता था | कल भी वह इस घरमें नारद बनकर गाना सुना गया था| वह कभी भट्टाचार्य महाशयके और कभी फूफाजीके पैर पड़ने लगा । बोला, “ लड़कोंने इतना अधिक भयभीत होकर, और दीवट छुढ़काकर, ऐसा भीषण काण्ड मचा दिया कि में स्वयं भी मारे डरके उस बुक्षकी श्री, मा. ४ - २




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