श्रीकान्त | Shreekant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीकान्त १७
निकट और फिर उसपर बैठा था भेडिया । हिन्दुस्तानी सिय्पटाये तक नदीं
और जो छोग तमाशा देखने आये ये वे भी सनाका खींचकर रह गये |
ऐसी विपत्तिके समय न जाने कर्हेसि इन्द्र आकर उपस्थित दयो गया ।
दायद वद सामनेके रास्तेते करटी जा रहा था ओर शोर-गुख युनकर अन्दर
घुस आयां था । पठ-मरम सौ कण्ठ एक साथ चीत्कार कर ञ्ठे, “ओरे,
লা ই बाघ ! भाग जा रे छड़के, भाग जा ! ?
पहले तो वह हडवड़ाकर भीतर दोड़ आया किन्तु पढ-भर बाद ही, सब
हार सुनकर, निर्भय दो, ओगन्मे उतरकर खाख्टैन उठाकर देखने खगा ।
दुम॑जटेकी चिडकियोमेषे ओौसते सेस रोककर इस साहसी रढकेकी ओर
देख देखकर ‹ दुर्गा ? नाम जपने लगीं । नीचे भीड़में खड़े हुए हिन्दुस्तानी
सिपाही उसे हिम्मत बेंधाने छगे ओर आमास देने छंगें कि एकाघ हथियार
मिलनेपर वे भी वहाँ आनेको तैयार हैं ।
अच्छी तरह देखकर इन्द्रन कहा, “८ द्वारिका बावू, यह तो बाघ नहीं
माछूम होता । ” उसकी बात समाप्त होते न होते वह “হাক উমা
टायगर ? दोनों दाथ जोड़कर मनुष्यके ही स्वरमें रो पड़ा और बोला, “ नहीं,
बावूजी, नहीं, में बाध-भाद नहीं, श्रीनाथ बहुरूपियों हूँ |? इन्द्र ठठाकर
हँस पड़ा । भद्दाचार्य महाश्य खड़ारऊँ हाथमें लिये सबसे आगे दौढ़ पढ़े,
४ हरामजादे, ठुझे डरानेंके लिए. और कोई जगह नहीं मिली ? ” फूफाजीने
महाक्रोघसे हुक्म दिया, “ सालेको कान पकड़कर छाओ। ”
किशोरीसिंहने उसे सबसे पहले देखा था, इसलिए उसका दावा सबसे
प्रबल था। वह गया ओर उसके कान पकड़कर घसीटता हुआ ले आया ।
ह्वाचार्य महाशय उसकी पीठपर जोर जोरसे खड़ाऊँ मारने छगे और गुस्सेके
मारे दनादन हिन्दी बोलने छगे,---
इसी हगमजादे बदजातके कारण मेरी इड्डी-पसछी चूरा हो गई हैं ।
साले पछढ़ियोंने घूस मार मारकर कचूमर निकाल दिया । 7
श्रीनाथका मकान बारासतर्म था | वह हरसाछ इसी समय एक बार रोज़गार
करने आता था | कल भी वह इस घरमें नारद बनकर गाना सुना गया था|
वह कभी भट्टाचार्य महाशयके और कभी फूफाजीके पैर पड़ने लगा ।
बोला, “ लड़कोंने इतना अधिक भयभीत होकर, और दीवट छुढ़काकर,
ऐसा भीषण काण्ड मचा दिया कि में स्वयं भी मारे डरके उस बुक्षकी
श्री, मा. ४ - २
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