वायुमंडल | Vayumandal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विपय-प्रवेद्दा ] १७
उल्कायें
हम प्रायः आकाशर्म तारे हृटते हुये देखते हैं। यह
पत्यरके बढ़े-बढ़े टुकड़े हैं जो आकाशर्म चक्कर लगाते रहते
ह शौर पृथ्वीके वायुमंडलमें पृथ्वीके गुरुत्वाकर्षण (818 ए1-
1810७) से अधिक वेगवान हो जते है! उस समय
इनका वेग ख्गभग १५ य २० मील प्रति सेके होता है
इनके अधिक चेगके कारण वायुके धपंणसे यदह इतने श्रधिक
गरम हो जाते हैं कि चमकझने छगगते हैं अतः हम इन्हें
देख सक्ते ह । इन्दीको उल्का { 161९0 }) कहते
हैं। इन उल्काश्रोंके पथ तथा किरण-चित्रसे वायुमंडरूके ऊपरी'
रतरोका घनत्व तथा यनावट निकाली जा सकती है । लिंढमन
( 1.1101181 ) और डाबसन ( {2010800 ) ঈ
उल्काभोके पर्थोशी जाँचसे यह লাল किया है कि ऊपरी
स्तरेंका तापक्रम २७*श के रूगभगण मानना पदेगा ।
स्योतिय,
यह यात सबको विदित ই কি प्रृध्वीके ध्रुवोके निकट
छुः सास लगातार रात तथा छुः मास लगातार दिन होता
है। वहां रातमें बिल्कुल अंधकार नहीं रहता चल्कि फभी-
कभी पीली या नारंगी रंगकी दीप्यमान ज्योतियों इप्टि-्गोचर
होती हैं। उत्तरी घुवकी ज्योतियोंको सुमेरुज्योति (8 पा018 '*
80४68116) सथा दक्षिणी श्रुवौ ज्योतिर्यो
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