आधुनिक कवियों की काव्य साधना | Aadhunik Kaviyo Ki Kavya Sadhna

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Aadhunik Kaviyo Ki Kavya Sadhna by राजेंद्र सिंह गौड़ - Rajendra Singh Gaud

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ७ भी लिखे हैं; पर इनमें से अधिकांश अरपूर्ण हैं। सुलोचना, मदालय और लीलबती उनके लिखे श्राख्यान हैं| परिहास पंचक मे उनका दास्य रस-सम्बन्धी गद्य है | परिद्यसिनी में छोटे-मोटे हास्य-लेख हैं | इस प्रकार हम देखते हैं कि मारतेन्दु ने अपनी रचनाओं-द्वारा साहित्य के प्रध्येक अंग को छूने की सफल चेष्टा की है। उनका साहित्य अगीरथ प्रयास का सुन्दर परिणाम है | अमी हमने भारतेन्दु की जिन कृत्तियों का उल्लेख किया है उनका अध्ययन करने से हमें उनके समय की सुख्य मुख्य विशेषत ओं का यथार्थ परिचय मिल जाता है श्रौरं हम यह जान जाते हैं कि उन्होंने उन विशेपताश्रों को हिन्दी भारतेन्दु का साहित्य में स्थायी रूप से स्थान देकर अ्रपने से अधिक समय अपने साहित्य का कल्याण किया है | वस्तुतः भारतेन्दु का समय भारतेन्द्ु की प्रतिभा के उपयुक्त था | उनका जन्म ऐसे समय में हुआ या जब भारत में प्राचीन और नवीन शक्तियों के बीच संघर्ष चल रहा था और राजनीति के लेन में किसी नवीन वाद? की व्यवस्था न होने पर भी एक इलचल-सी सची हुई थी | दिन्दू श्रौर मुसलमान-राज्य आपसी फूट और साम्प्रदायि- कता के कारण निर्वबल हो गये थे भऔौर एक तीसरी शक्ति--कुशल व्यापारियों के रूप में अ्रंगरेज़---अ्पनी सत्ता स्थापित करने में संलग थे | न्याय से, अन्याय से, जिस प्रकार भी हो सके, उनका उद्देश्य भारत का रक्त चूसना और पारस्परिक द्वेप-भावना को तीवतर करके अपना उल्लू सीधा करना था | हिन्दू ओर मुसलमान दोनों शक्तिह्दीन थे, अव्यवस्यित थे, अ्रसंगठित थे | किसी का कीई नेता नहीं या। इसीलिए १८५७ का चह विज्ञन, राजनीतिक- तथा धार्मिक कारणों से उठी हुई बढ आंधी शक्ति और श्राधिकार का वह पारस्परिक इन्द्र, जहाँ का तहाँ शान्त हो বাতা | हमारी सम्यता, हमारा रहन-सहन, हमारी प्राचीन मर्यादा--सब - पर अगरेज़ी रंग चढ़ने लया | इस ग्कार निराशा के उस युग में अपना




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