संस्कृत कवियो के व्यकितत्व का विकास | Sanskrit Kavio Ki vykittv Ka Vikas
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30.6 MB
कुल पष्ठ :
349
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी - Dr. Radhavallabh Tripathi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सिद्धान्त भर अध्ययन की दिद्ाएं १७ कवि या लेखक का जैसा व्यक्तित्व होगा वैसी ही उसकी शैली होगी। गेठे ने इसीलिये कहा है-- किसी लेखक की शैली उसके मस्तिष्क की सच्ची प्रतिलिपि है । शापेनहावर ने शैली को आत्मा की प्रतिच्छवि कहा है। टो० एड्वाड्स ने भी कहा है कि शैली व्यक्ति को अपनी निजी चीज होती है वह उसके स्वभाव का अंग है । व्यक्तित्व के शारीरिक चारित्रिक मानसिक आदि सभी पक्ष काव्य मे प्रति- बिस्बित हो सकते हैं अथवा उसे प्रभावित कर सकते हैं। यद्यपि व्यक्तित्व के शारौरिक पक्ष का काव्य से सीधा सम्बन्ध नहीं परन्तु वह भी काव्य को किसी नकिसींखूपमे प्रभावित करता हो है। शारीरिक न्युनता हीनता की भावना को जन्म देती है । ऐसे व्यक्ति अन्य क्षेत्रों मे विश्िष्टता पाने का प्रयास करते है । सम्भव है यदि ऐसा कोई व्यक्ति काव्य के क्षेत्र मे प्रविष्ट हो तो वह अपनी शैली को अधिक आकर्षक बनाने का प्रयास करे । व्यक्तित्व के बौद्धिक पक्ष के अन्तर्गत परिगणित मानसिक शक्तियों का साहित्य के विभित्त उपादानों से गहरा सम्बस्ध है। जंसे काव्य में प्रयुक्त भाषा का व्यक्ति की प्रहण शक्ति से विभिन्न हृश्यो परिस्थितियों तथा घटनाओ के वर्णन चित्रण अथवा अलकरण का कवि या लेखक की कल्पना-दक्ति से तथा नवीन विचारों का उसका चिस्तन-दाबित से गहरा सम्बन्ध है। उपरोक्त मानसिक शक्तिया सभा लेखकों मे एक हो मात्रा या अनुपात मे नहीं रहतो नत इनकी मात्रा या भेद के अनुसार उनके कार्य या. उनके ढवारा प्रस्तुत सामग्री में भी अन्तर आ जाना स्वाभाविक है । एक ही युग तथा एक ही विषय से सम्बद्ध दो कवियों की रचनाओ मे भी रूप और शैली की दृष्टि से गहरा अन्तर आ जाता है। स्मरण दयक्ति तथा चिन्तन शक्ति साहित्य को विषयवस्तु को जन्म देती या प्रभावित करतो है क्योकि इनके द्वारा प्रस्तुत तथ्य और विचार विषयवस्तु के घटक तत्व हुआ करते हैं । कवि की ग्रहणशक्ति तथा कल्पनादक्ति उसकी शकलो को प्रभावित करती है । ः साहित्य में प्रस्तुत तथ्य विचार हश्य आदि का विवरण अनुभूति से सवलित होता है अन्यथा उसमें काव्यात्मकता तया आकर्षण उत्पनन नहीं हो सकता । अनुभूति का सम्बन्ध व्यक्ति के भावात्मक पक्ष से है। भावात्मक पक्ष साहित्य को विषय वस्तु तथा शैली दोनो को ही प्रभावित करता है। करुणा प्रेम क्रोध आदि जहा एक ओर विषयवस्तु के लिये सामग्रो प्रस्तुत करते हैं वहीं दूसरी ओर वे वक्ता या लेखक की वाणी गति या चेष्टाओ को भी प्रभावित करते हैं। मन की शान्त अवस्था में व्यक्ति भाषा के परिष्कृत व स्थिर रूप का प्रयोग करेगा पर उसे- जित अवस्था में भाषा के अप्रचलित व असामान्य विशिष्ट रूप का । भावों को ऋतृता
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