स्वाध्याय | Swadhyaya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : स्वाध्याय  - Swadhyaya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भगवानदीन - Bhagawanadeen

Add Infomation AboutBhagawanadeen

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
स्वाध्याय : क्या ओर क्यो? ११ आदमी का विकास कहकर हम क्या कहना चाहते हैं? और आदमी के विकास के लिए क्या कोई शत या शर्तें जरूरी हैं १ आदमी के विकास की कथाएँ पूरब और पच्छिम, दोनों जगह मिलती हैं । पूरब में उन कथाओं का नाम पुराण है और आदमी के विकास का नाम अवतारः कच्छ, मच्छ, सूक्तर, उरसिह इत्यादि सूपो मेँ पाया जाता ३ । पच्छिम में आठमी के विकास की कथा को “विज्ञान”! नाम दिया गया है और वहो आदमी के विकासको सीधे-सीधे नाम ভিত বাব हूँ यानी यह कि वह पहले मछली रहा, फिर थत्न का प्राणी बना, फिर पूँछवाला बन्दर हुआ, फिर वे-पूँछ का बन्दर और दो पाँव पर चल्लना सीखकर आदमी हो-गया | टोनों तरह की इन कथाओं में कोई सचाई रह सकती है। पर आन उन्हें ज्यॉ-की-त्यों स्वीकार कर लेने से और मनोविज्ञान के शास्त्र में जगह दे देने से आत्मपठन में कोई आसानी नहीं हो सकती | स्वाध्याय के लिए, इस वक्त यही ठीक होगा कि हम यह मानकर चलें कि हम यह बिलकुछ नहीं जानते कि आदमी शुरू में कैसे बना, कैसे पैदा हुआ, कैसे रिग्ता, कैसे क्या हुआ भौर स्वाध्याय के खातिर हम यह मी मान लें कि हम यह भी नहीं' जानते कि आदमी दो पैरों पर कव और केसे चलने लगा और यह भी नहीं जानते कि आदमी ने कब बोलना सीखा ओर क्व सोचना सीखा । इतिहास-विज्ञान बडी तेजी के साथ तरक्की कर रहा है। जिस बात को वह कभी ढाई हजार बरस पुरानी बताता था, आज वह उस बात की लाखो बरस पुरानी कह रहा है। नयी-नयी खोजों और नयी-नयी खुदाइयो से नयी-नयी बाते इतिहास के लिखनेवालो के हाथ छग रही हैं और इसलिए वे नित-नये इतिहास के वेश्ञानिक सिद्धान्त गढते रहते हैं । इतिहास-काल से पहले के आदमी के बारे में कुछ कहना बहुत मुश्किल काम है| इतिहासकार खुद भी यह ठीक-ठीक नहीं बता सकते कि वह आज के आठ्मी से कितना मिलता-जुल्ता था और उसकी हड्डियाँ किस तरह की और क्तिनी लम्बी थीं। उस समय का आदमी तो शायद उस आदमी से भी नहीं मिलता था, जिसे इतिहासकार निरा जंगली आदमी बताते हैं ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now