बात में बात | Baat Mein Baat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बात मे बात ५ कहती । पर परदेशी, जो भी उन्हे नगर-सीमामे कही भी मिलता है, उसे मार देती है। आखिर उनका काम भी तो कैसे हो चले। पर तुम चिन्ता मत करो । मेरी प्रतिमा पर चढे फूल' का स्पर्श अपने घाव से करो, अभो ठीक हो जाओगे ।” जोयण ने एक फूल लगाया । चमत्कार हो गया। उसका घाव ऐसा भरा कि दाग भी नही वना। पूर्ण स्वस्थ होकर जोयण उसी समय नगरी में घूस गया और अपनी सुसराल के घर की सीढियाँ चढने लगा । सव सो रहे होगे, यह सोच दरवाजा खट-खटाना चाहता ही था कि दो स्त्रियो की वाते उसके कानो मे' पडी। जोयण वे' सोचा, पहले इनकी वाते ही सुन लू । एक स्त्री कह रही थी-- “बेटी (आज का-सा मास तो तू कभी नही लाई। आज के मास-खण्ड मे वडा ही स्वाद है ।” आज का मास तो स्वादिष्ट होगा ही ।' उसकी लडकी ने कहा-जामाता का मास स्वादिष्ट नही होगा तो किसका होगा । यह मास मेरे पति, अर्थात्‌ तेरे जमाई का है ।” जोयण ने यह सुना तो उसका सिर चकराने लगा। जोयण मुनि बोले-- “अभयकुमार | वह जोयण मैं ही हू । मैंने अपनी स्त्री का जो बीभत्स रूप देखा तो मुझे ससार से विरक्ति हो गई | मुझे लगा कि जब यह मेरा शरीर हो मेरा नही है तो यह स्त्री मेरी कैसे हो सकती हैं ” अपने शरीर से अब कुछ काम ले लू, क्योकि वह रहेगा ही नही ।




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