श्रीरत्नकारणडर्श्रावकाचार | Shreeratnkaarnadrshravkaachar

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Shreeratnkaarnadrshravkaachar by सदासुखदासजी काशलीवाल - Sadasukhdasji Kaashlival

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(घट विषय प्र्छ विषय देशावकाशिक ब्रतमें क्षेत्र... | प्रकारान्तरसे बैयाघ्रतका की मयादा २३७ | स्वरूप स्श्प देशावकाशिकमें काल | ब्ाह्मार दान की मयादा २३७ ; दानका फल २६६ देशाबकाशिककां प्रभाव २३८ ' दानका प्रभाव २७० देशावकाशिक ब्रतके . दानके चार मंद और पंचातीचार र३८ '. उनका स्वरूप सामायिकका स्वरूप श्रौर.... ; दानके योग्य पात्र-्कुपात्र सामायिकके योग्य स्थान ९३६ | श्र उसका फल... २६६ सामायिककी अन्य : सुपात्र दान करनेबालोंमें सामग्री र४० :. प्रसिद्ध ३०४ सामायिकमें स्थित यूह- ; वैयाबृत््यमें जिन पूजन का- स्थ चलोपसूष्ट मुनि- । विधान ३०६ समान है ४८ ! पूजने योग्य नवदेब आर सामायिकमें चितबन- ।.. द्रब्योंका वर्णन ३०६. योग्य संसार-मोच- ! कृत्रिम चैत्यालयोंका रवरूप र४६ | स्वरूप ३२ सामायिकक पंचातीचार २४१ जिनपूजामें प्रसिद्ध मेंडक देर३. शिक्षात्रत २५२ | वेयात्रतके पंचातीचार हे: ३ ग्रोषघोपवासमें त्यागने । 'अर्दिसारु त्रतकी पंच- योग्य पदार्थ २४३ . भावना इ्श्छ उपवासका अथ र५४ । सत्यारुब्रतकी पंचभावना ३३४ | उफपचासके पंचातीचार ९५५ ! झाचौयांणुघ्रतकी वेय्यावृत्य शिक्षाज्त ९४५६ ' पंच भावना २३६




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