श्रावकाचार संग्रह | Shravkachar Sangrah

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Shravkachar Sangrah by हिरालाल शास्त्री - Hiralal Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० श्रावकाचार-संग्रह (३) प० किशनसिहजीने श्रावकके बारह ब्रतों और ग्यारह प्रतिमाओक वर्णनके बाद जल- गालन, प्रासुक जलू-विधि और रात्रिभोजन-त्याग मादिका वर्णन किया है। पं दौलतरामजीको यह वर्णन कुछ व्युत्क्रम-सा प्रतीत हुआ, हो और इसीलिए उन्होंने श्रावकके बारह ब्र्तीका वर्णन क रनेकं पूवं ही उक्त वर्णन सवंप्रथम करना उचित्त समज्ञा हो । जो कुछ भी हो, फिर भी दौलत्तरामजीकी वर्णन-शैली बहुत ही भावपूर्ण, सरल और रोचक है । उन्होंने अहिसादि प्रत्येक अणब्रत्तका वर्णन विधि और निषेध-मुखस किया है । जेस अहिसाणु- ब्रतका वर्णन करते हुए पहिले अहिसा या. दया-करुणाकी महत्ता ६७ हन्दोंमे बताकर पुन. हिसा पापके दोषोंका वर्णन २४ छन्‍्दोंमें किया है। ( देखो पु० ५६३-२६८ ) इसी प्रकार सत्य-मसत्य, चौयं-अचौयं, ब्रह्म-जब्रहा मौर परिग्रह-भपरिग्रहके गण-दोषोका वर्णन भी खूब विस्तारसे किया है | उपहार यद्यपि तीनों ही संग्रमे ५२ क्रियाभोंका वर्णन, तथापि पदम कविने पूवं परम्पराके अनुसार उत्थानिकामें श्रेणिकके प्रश्न करनेपर गौत्तम-गणबवर के द्वारा श्रावकक्क ब्रतोका वर्णन कराया है और सस्कृतमें रचित श्रावकाचारोंको दुरुहताके कारण सवंसाधारणके लाभार्थ उसे अपनों मातृ- भाषामें उन्हे रचनेकी प्रेरणा हुई है। यही कारण है कि उन्होंने अपनी रचनाका 'श्रावकाचार'के नामसे ही उल्लिखित किया है। पं० किजरनसिहजा और प० दौलतरामजीने यत. सस्क्ृत किया- कोषके आधारपर अपनी रचनाएँ की है अतः उन्होंने अपनी रचनाओंका नाम क्रियाकोष' देना ही उचित्त समझा है । तीनों रचनाओं की अपनी अपनी स्वतन्त्र विश শলা है, भत्त. तीतों ही पढने, मनन करने और तदनुकूल आचरण करनेके योग्य है |




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