विश्व की मूल लिपि ब्राही | Vishv Ki Mool Lipi Brahi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
155
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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সস
मी वीतराभी थे, ससार के बीच मी सोक्षणामी थे और वे आसफ्तियों के घिराव
मे मौ अनासक्त थे) उन्होंने एक ओर कर्म साधा तो इसरी ओर अध्यात्म । वे
सही अर्थों से पुरुष थे । पौरष के घनी । इहलोक उनका था, परलोकं मौ उनका
ही बसा । वे मारत माँ के अमस्पृत्र थे । काश, मारत के महाराजाओं ते उनका
अनकरण किया होता, तो राज्यतन्त्र भी प्रजातस्त्र होता और उनकी उज्ज्वल
गांयाये स्वर्णाक्षरों मे लिखी जाती ।
ऋषमदेव ने अपने सभी पुत्रों को नाना कलाओं और विद्याओं मे निष्णात
बनाया | सभी योग्य बने । पौरुष तो जेसे साक्षात् हो उठा था। वे क्षत्रिय थे तो
त्राण सह ' उनका जीवन था। वे कर्म और अध्यात्म के सन्धिस्थल पर तेज-पुञ्ज-
पे दमकते रहे । प्रबृद्धतत््व ' ही उनका जीवनलक्ष्य था, जिसे उन्होंने वीरता-पृवंक
प्राप्त किया। ऋषभदेव की पुत्रियां भी सौ-सो पुत्रों से अधिक पतशीला थी । शील
और सौन्दर्य तो ज॑से उनमे साक्षात् ही हो उठा था । वे शिवरूपा थीं । उचित वय
मे भगवान् ने उन्हें भी शिक्षित बनाया । ब्राह्मी बडी थी और सुन्दरी छोटी ।
বালী के अगो से स्वर्णरेण वे समान काति विकीर्ण होती थी । जगदूगुरु ऋष मदेव
ने दोनों के विनय, शील आदि को देखकर विचार किया कि यह समय इनके विद्या-
ग्रहण का है, अत उन्होंने दोनों को सिद्धमातृका के साथ-साथ अक्षर, गणित,
चित्र, सगीत आदि का ज्ञान कराया । भगवज्जिनसेनाचाय के महापुराण! मे लिखा
है कि ऋषभदेव ने दाहिनं हाथ से लिपि और बाये हाथ से अको का लिखना
सिखाया । यही कारण है कि लिपि बाये से दायी ओर और अक दाये से बायीं ओर
चलते हैं। ,भगवेती यूत्र ' के एक प्रकरण मेलिखा है कि मंगेवान् ने दाहिने हाथ
ये ग्राह्मी को लिपिज्ञान दिया, अत उसी के नाम पर लिपि को मी श्रमी कहने
लगे और ब्राह्मी लिपि नाम प्रचलित हो गया। इससे भिद कि ब्राह्मी
और लिपि एकरूप हो गई थी । दोनों मे तादात्म्य हो गया था । यह तभी सम्मव
है, जब ब्राह्मी ने लिपि के साथ एकनिष्ठता साधी हो । एकनिष्ठता, एकाग्रता और
योग पयगिवाची हैं। अर्थात् ब्राह्मी साधिका थी, जिसने लिपि पर ध्यान केन्द्रित
किया था । सच तो यह है कि इक्ष्वाकृकश साधकों का था, योगियों का था,
महामानवों का था, जिन्होंने जगत को एक नये साँचे में ढाला, तो अध्यात्म के
पुरस्कर्ता भी बते । उसकी बेटियाँ भी साधना की प्रतीक थीं। जिस ब्राह्मी के
पितामह नामि के नाम पर, यह देश अजनामवर्ष और ज्येष्ठ भ्राता मरत के नाम पर
मारतवर्ष कहलाया हो तथा जिसके पिता श्रमणधारा के प्रवत्तेक बने हों, यदि
उसके नाम पर लिपि मी ब्राह्मों संत्रा से अभिहित हो उठो हो, तो आएइचयं क्या
१ महापुराज 16/97, 102
२ अभिधानराजेकफोश, भाव 2, पृष्ठ 1126.
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