आर्यों का आदि निवास : मध्य हिमालय | Aryo Ka Aadi Nibash : Madhya Himalya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रवकथन १५ भारतीय साहित्य में कहीं भ्रस्तित्व ही नहीं है । इसलिये प्रायः सभी इतिहासकारों ने अपने भौगोलिक एवं ऐतिहासिक श्रन्वेषणों में भारतीय संस्कृति के इस आदि स्रोत की सर्वथा उपेक्षा की । व्यास और कालिदास ने अपने समस्त काव्य-म्रन्थों में हिमालय की प्राकृतिक श्री से सम्पन्न जिन-जिन प्राचीन तीर्थस्थलों का वर्खत्त किया है वह मध्य हिमालय का यही भू-भाग है, जो गंगा और अलकनन्दा का उद्गमस्थल है । वे एकं भी कश्मीर में नही, वरन्‌ स्पष्टतः गढ़वाल की भौगोलिक सीमा के ग्रन्तर्गत ह, परन्तु व्यास, विशेषकर कालिदास के सभी मीमांसकों ने उन्हें निस्संकोच कश्मीर तथा भारत के श्रन्‍्य भू-भागों में स्थापित करने का प्रयास किया है । भूषण शोर मत्तिराम श्रीनगर में गढ़वाल-नरेश फतेहशाह के श्राश्चित भी रहे हैं, परन्तु मिश्रबन्धुओं ने गढ़वाल के श्रीनगर को कश्मीर का श्रीनगर लिखा है। उन्होंने मतिराम ग्रन्थावली में भी बुन्देलखंड की कल्पना करके श्रीनगर गढ़वाल-नरेश फतेहशाह को फतेहशाह बुन्देला लिखा है । गढ़वाल नरेश फतेहशाह और गढवाल के श्रीनगर के सम्बन्ध में सरोजकर शिव सिंह सेंगर और गोविन्द गिल्‍ला भाई ने जो भल की मिश्रबन्ध भी उस भल से नहीं बच सके। गढ़वाल-नरेंश फतेहशाह की प्रशंसा में भूषण और मतिराम के अतिरिक्त एक और रतन ( क्षेमराज ) नाम कविरत्न ने फतेहप्रकाशः नामकं जो सुन्दर काव्यग्रन्थ लिखा है, उस पर भी उक्त सज्जनों ने बुन्देलखंड ही में किसी फतेहशाह बुन्देला और श्रीनगर की निराधार कल्पना करके गढ़वाल की भौगोलिक एवं ऐतिहासिक स्थिति के सम्बन्ध में अपना अज्ञान प्र्दशित किया है । प्रसिद्ध: हिन्दी शब्दकोश 'शब्दार्थ पारिजात' में गढ़वाल को “उत्तर भारत का एक नगर' लिखा है । गढ़वाल को वेदों ने, पुराणों ने उसके सुन्दर सरोवरों, प्राकृतिक पुष्पोद्यानों, तीर्थस्थलों तथा अगस्त नदी-निर्करों के कारण 'स्वर्गभूमि” स्वीकार किया है । बह श्रायं-संस्कृति का प्रादि सोत है । भ्राज भी श्रा्यजगत मे उसकी भ्राध्यात्मिक भ्रहितीयता सुरक्षित है,परन्तु भारतवर्षं के इतिहास को भाति उसका सिलसिलेवार लिखित इतिहास प्राप्त नहीं है । उसके क्रमवद्ध इतिहास लिखने वालों के पास भी आज प्रामाणिक ऐतिहासिक सामग्री का अभाव है। हिन्दू शास्त्रों द्वारा गढ़वाल का सर्वोपरि आध्यात्मिक महत्व सर्वत्र स्वीकृत है, परन्तु गढ़वाल में कुछ रहे-सहे तीर्थस्थलों, गंगा आदि देवनदियों के श्रतिरिक्त उसके अधिकांश प्राचीन स्मारक सुरक्षित नहों हैं, और न तो प्राचीन लिपिवद्ध इतिहास-ग्रन्थ ही उपलब्ध हैं। स्कन्धपुराणान्तर्गत केदारखंड में इस क्षेत्र के तीर्थ-स्थलों का क्रमबद्ध ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक महत्व




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