संस्कृत काव्यों में पशु पक्षी | Sanskrit Kavyon Mein Pashu Pakshi

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Sanskrit Kavyon Mein Pashu Pakshi by रामदत्त शर्मा - Ramdutt Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| छ जाता है. ड!० शर्मा ने इस विषय का चयन कर वस्तुतः भ्रपनी मौलिक सूक का परिचय प्रस्तुत किया है. यह शोध-प्रबन्ध संस्कृत वाडःमय के बिखरे हुए पशु- पक्षियों का संग्रह भ्रथवा नाम गराना ही नहीं है भ्रपितु पशु पक्षियों का वैज्ञानिक अध्ययन है, भ्रथवा यों कहना चाहिये कि एक प्रयोगशाला है जिसमें पशु-पक्षियों के स्वभाव, मूल उद्गम, उनकी देनिक-चर्या, उनकी आदतों का परीक्षण आदि का सम्यक्‌ प्रध्ययन क्रिया गया है. मानव-जगत्‌ के साथ उनके सम्बन्धों का प्रध्ययन, मनोवैज्ञानिक हष्टि से उनका परिणीलन, साहिव्यकारों की श्रनुभूतियों के साथ प्रभिव्यक्तिकरण श्रादि का पूर्णं परिचय एवं विशिष्ट ज्ञान हमें इस ग्रथ के माध्यम से सुलभ हो जाता है. संस्कृत-साहित्य में पशु-पक्षियों के वर्णन तो प्रच्चुर मात्र में उपलब्ध होते हैं, किन्तु किसी एक प्रथ के माध्यम से हम पशु-पक्षि-जगत्‌ का सम्पूणं श्रध्ययन श्रथवा परिचय प्राप्त नहीं कर पाते. इस शोघ-प्रबन्ध के माध्यम में हमें इस जगत्‌ का सम्पूर्ण परिचय मिल जाता है--यह संस्कृत वाडः मय की श्रीवृद्धि में एक सफल कड़ी है. लेखक ने कालिदास एवं कालिदासोत्तर काव्यों' तक ही अपने शोध-प्रबन्ध को सीमित रखा है. यद्यपि सम्पूर्ण संस्कृत-साहित्य में प्रकृति-चित्रणों के साथ पशु-पक्षियों के विविध हृश्य उपस्थित होते हैं, किन्तु प्तमग्र साहित्य के साथ लेकर चलने से विषय श्रत्यन्त विस्तृत होने की सम्भावना थी--सप्ताथ ही पिष्ट पेषण की ग्राशंका भी बन सकती थी. इस दृष्टि से लेखक ने महाकवि कालिदास, अ्रश्वष्रोष, भारवि, दण्डी, माघ, बाणभदटु, श्रीहष, सुबन्धु श्रादि प्रमुख सस्छृत साहित्यकार का चयन कर इनके वाह.मय से पशु-पक्षियो का वेज्ञानिक .ग्रध्ययन प्रस्तुत किया है. ये सभी कवि संस्कृत साहित्य के प्रतिनिधि कवि ह तथा समस्त संस्कृत वाड मय कै भ्राधिकारिक व्यक्तित्व हैं | यह शोध प्रबन्ध ५ प्रध्यायों में विभक्त है. लेखक का मूल प्रतिपाद्य “काव्यो मे पशु -पक्षी” है. श्रतः सवंप्रथम लेलक ने कान्य शब्द का सम्यक्‌ विश्लेषण किया है. प्राचीन एवं भ्र्वाचीन मनीषियों की काव्य-मान्परतायें प्रस्तुत करते हुये डा० शर्मा ने आचाय॑ मम्मट के काव्य लक्षण की प्रशंसा करते हुये लिखा है-- “নফল के काव्य लक्षण को उत्तम स्वीकारने में बरोई बाधा प्रतीत नहीं होती.“ वस्तुतः श्राचायं मम्मट की काव्य-परिभाषा प्रलंकारवाही होते हुए भी श्रत्यधिक सुलभी हुयी है. इस लक्षण में कुछ परिवरतंन करने हुये भ्रनेक श्राचार्यो ने श्रेपने- झपने पृथक्‌ पृथक मत प्रस्तुत किये हैं. कुछ ने मम्मट का खण्डन किया है और कुछ ने मण्डन, आचाये जगन्नाथ का काव्य लक्षण- “रमणीयार्य: प्रतिपादकः शब्द: काव्यम्‌' संस्कृत काव्य-समीक्षकों का अन्तिम अभिमत है--जो. आचाय॑




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