मोक्षमार्ग प्रकाशक की किरणें | Mokshmarg Prakashak Ki Kirane
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
476
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कं प्री सिद्ध भ्य नम ड
के थी मोक्षमार्ग प्रकाशकभ्य नमः के
अध्याय सातवा
जैनमवानुयायी मिथ्यादृष्टियों का ক
[ बीर स० “५७६ माप शुक्रला १०, शनि, -४ १५३}
१ दिगम्वर सभ्ध्रदायर्मे मच्वे दव-गुस्-शाखकी मागता हीति
पर भी जीव मिध्याहृष्टि किस प्रवार हैं ? वह कहते हैं । जो वेदा त॑
बौद्ध, ध्वताम्त्रर, स्थानकवासी प्रादि हैं वे जन मतबा भ्नुसरण
बरनवथाले नहीं हैं --यह बात तो इस शारूके पांचवें प्रधिषार में
बही जा चुवी है। यहाँ ता यह कद्दत हैं कि--जो बीतरायवी
प्रतिमाकों पूजते हैं, २८ मूल गुण घारव' नग्न भावलिंगों मुतिषी
मानते हैं उनके वहे हुए शाख्रावा भम्यास बरते हैं--एसे जेन-
মলানুঘাঘী भी किस प्रदार मिश्यादृष्टि हैं ।
“सता स्वरूप में श्री भागचदजी छाजड ने पहा है कि
दिगम्वर जन कहते हैं वि--ट्म तो सच्चे देवादिको मानते हैं इस
लिये हमारा गृहीत मिथ्यात्व तो छूट ही गया है। तो कहते हैं कि-
नही, तुम्हारा गृहीत मिथ्यात्व नहीं छूठा है, बयोषि तुम गृहीत
मिथ्यात्वतों जानते ही नहीं। भ्रय देवादिकों मानना ही गृद्दीत
मिथ्यात्वका स्वरूप नदीं है 1 घल्वे देव-गुर-पाखकी शरदा
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