मोक्षमार्ग प्रकाशक की किरणें | Mokshmarg Prakashak Ki Kirane

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Mokshmarg Prakashak Ki Kirane by टोडरमल - Todarmal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कं प्री सिद्ध भ्य नम ड के थी मोक्षमार्ग प्रकाशकभ्य नमः के अध्याय सातवा जैनमवानुयायी मिथ्यादृष्टियों का ক [ बीर स० “५७६ माप शुक्रला १०, शनि, -४ १५३} १ दिगम्वर सभ्ध्रदायर्मे मच्वे दव-गुस्-शाखकी मागता हीति पर भी जीव मिध्याहृष्टि किस प्रवार हैं ? वह कहते हैं । जो वेदा त॑ बौद्ध, ध्वताम्त्रर, स्थानकवासी प्रादि हैं वे जन मतबा भ्नुसरण बरनवथाले नहीं हैं --यह बात तो इस शारूके पांचवें प्रधिषार में बही जा चुवी है। यहाँ ता यह कद्दत हैं कि--जो बीतरायवी प्रतिमाकों पूजते हैं, २८ मूल गुण घारव' नग्न भावलिंगों मुतिषी मानते हैं उनके वहे हुए शाख्रावा भम्यास बरते हैं--एसे जेन- মলানুঘাঘী भी किस प्रदार मिश्यादृष्टि हैं । “सता स्वरूप में श्री भागचदजी छाजड ने पहा है कि दिगम्वर जन कहते हैं वि--ट्म तो सच्चे देवादिको मानते हैं इस लिये हमारा गृहीत मिथ्यात्व तो छूट ही गया है। तो कहते हैं कि- नही, तुम्हारा गृहीत मिथ्यात्व नहीं छूठा है, बयोषि तुम गृहीत मिथ्यात्वतों जानते ही नहीं। भ्रय देवादिकों मानना ही गृद्दीत मिथ्यात्वका स्वरूप नदीं है 1 घल्वे देव-गुर-पाखकी शरदा




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