सुकुल की बीबी | Sukul Ki Bibi

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Book Image : सुकुल की बीबी  - Sukul Ki Bibi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुकुल की बीबी रण पर मेरा भाव बहुत दिनों तक नहीं रहा । जब आठ-द्स रोज़ इस्तहान के रह गए एक दिन जेसे नाड़ी छूटने लगी | खयाल आते ही कि फेल दो जाउँगा प्रकृवि में कहीं कविता न रह गई संसार के प्रिय-मुख विकृत हो गए पिताजी की पवित्र सूर्ति प्रेत की-जैंसी भयंकर दिखी माताजी को स्नेह की बषा सें अविराम विजली की कड़क सुनाई देने लगी वंश-सयादा की रक्षा के लिये विवाह बचपन में हो गया था-सवीन प्रिया की अभिन्नता की जगह वंकिम हृगों का वेमनस्य-दलाहल क्षिप्त होने लगा पुरजनों के श्रगाढ़ परि- चय के बदले प्राणों को पार कर जाने वाली अवज्ञा सिलनें लगी । इस समय एक दिन देखा सुकुल के शीणे सुख पर अध्यवसाय की प्रसन्नता झलक रही है। किताब उठाने पर और भय होता था रख देने पर दूने दवाव से फ़ेल हो जानेवाली चिंता । फलत में पृथ्वी-अंतरिक्ष पार करने लगा । कल्पना की बेसी उड़ान आज तक नहीं उड़ा । वह मसाला ही नहीं मिला । अंत में निश्चय किया अवेशिका के द्वार तक जाऊंगा धक्का न मारूगा सभ्य लड़के की तरह लौट आईईंगा । अस्तु सबके साथ गया | और-और लड़कों ने पूरो शक्ति लड़ाई थी इसलिये परीक्षा-झल्र के निकलने से पहले तरह-तरह से हिसाब लगा कर अपने-अपने नंबर निकालते थे मैं निश्चित - इसलिये निश्चित था में जानता था कि गणित की नीरस.




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