सोहन काव्य-कथा मंजरी | Sohan Kabya-Katha Manjari

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Sohan Kabya-Katha Manjari by वल्लभमुनिजी - Vallabhmuniji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ध्राई दासी बात सुई पुण ठुकराणी जाणी रे। ठीक समय पर श्राया द्वार नहीं रोटी पाणीरे।। संग ।। ११॥ खोटी होसी कामन बरणसी भटके ही कहला द्‌ रे। ऐसे ढंग से ककू इशारों कट समझा दू रे॥ संग।। १२॥ दासी को समकाकर कहती ऐसे जाकर कहिजे रे । निरालबाई निछरावल लेवे यों कह दीजे रे । संग । १३ ॥। भूख सिंह जी से कह दीजे निराल बाई कहलावे रे । सुण दासी की बति ठाकुर मन को समभावे रे ।। संग ।। १४॥ यहां तो श्रागे ही भूखा है क्या मुझ भूख मिटवेरे। हुआ रवाना सोचो लाया वैसा पावे रे॥ संग ॥ १५ || सुनकर कथा हिया में धरज्यों सोहन मुनि चेतावे रे । पुण्य पाप कोदेख तमासो पण्य कमावे रे।। संग ।) १६1)




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