नये साहित्य का सौन्दर्य-शास्त्र | Naye Sahitya Ka Saundarya-Shastra

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Naye Sahitya Ka Saundarya-Shastra by गजानन माधव मुक्तिबोध - Gajanan Madhav Muktibodh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रचनाकार का मानवतावाद १५ वह दष्टि निजगत तथा जीवन-क्षत्रगत अर्थात वमगत प्रयासा वै योग का एक परिणाम है, भले ही सवेदना के रुप में अनुभूति के रूप म, उसके तत्त्व तथा काय निनी मालूमदहो। सवेदनात्मक जनुभवात्मक आधारा पर उपस्थित यह जो विचारुव्यवस्था ह यह्‌ जो जीवन ज्ञान-व्यवस्या ह्‌ वह उसके साहित्य म, उसकी रचना म, उसकी कलाऊति म तरह-तरह से प्रकट होती है। मरे अपने खयाल स অন मुझ्यत दो प्रकार से होती है। एक तो बह भाव दृष्टि, जीवन आलोचन, जौवन विवेक जयवा घिचार चित्रण या भावाकन के रूप म प्रकट होती ह । क्तु इसके अतिरिवत, वह्‌ कलात्मक विवेक का रूप घारण कर कला-सम्ब घी विचारधारा भी बन जाती ह्‌ जौर उसके प्रभाव से वह क्लाइति का जतर्वाह्म सगठन भी करती हू 1 कितु महत्त्व वी वात यह हूँ कि उसये ज त करण मे स्थित यह जो जीवन- चान-व्यवस्था हू--जिसके मूल-जाल सवेदनात्मक जनुभवात्मक होते है उस जीवन भात-व्यवस्था को जीवन जगत की व्याझ्या के साथ अर्थात कसी व्यापक विचार वारा के साथ, कसी दशन के साथ, जोडन का प्रयत्न होता रहता हू । एक जार लेखक स्वय जीवन जगत की “याप्या चाहता हू तो दूसरी ओर साहित्य क्षेत्र म विभि व प्रकार की विचार घाराएँ जौर दशन जीवन-जगत वी व्याख्या को जेकर उपस्थित होती हैं। इस प्रकार लंखकवे अत करण मे उपस्थित सवेदनात्मक-जनुभवात्मक जीवन चान “यवस्था वे साथ जीवन-जगत वो दाशनिक “यवस्था का सम-वय हो जाता ह जौर वह दाशनिक धारा लखक को आत्मविस्तार वे रूप मे ही टिखाई देती हू। यह जावश्यक नही है कि लेखक जिस जीवन चान-व्यवस्था को लेकर चलता हूं उसमे विवास नहीं होता अथवा जिस दाशनिक धारा का लेकर चलता हु, उसम वह अपनी ओर स कोई नवीन तत्तव नही जोडता। इसके विपरीत, वहू स्वयं भी अपने जापको उस दाशतिक धारा द्वारा परिषुष्ट करता हू अपन स्वयं वी जीवन ज्ञान व्यवस्था वा व्याख्यान उस दाणनिक धारा की सहायता से करता है साथ ही उस दाशनिक धारा को घह नेपनी विनेय दृष्टि से व्याख्याते करता हुमा उसमे नवीन अथ भर देता ह्‌ । কিন্ত এন বক্ষ विकास प्राप्द जीवन पाल व्यवस्था जो लेखव थे कत्त चरण मे स्थित होती ह और क्‍लाइति म॑ क्सी न कसी रूप म प्रकट होती ह, वह नवीन जीवन परिस्थितिया की पंचीदगिया भे पडक्र नवीनईजीवन प्रसगो भे ठेस खाङर जव नवीन तत्तव ग्रहण करन लगती ह तव एसे नवीन सवदनात्मक अयुभव * त्वा के स्तर के स्तर हृदय में वन जाने के उपरा-त या तो कलाकार पूद प्राप्त दानिक थाय को हौ लचीली वनाङ्र उस्म नवीन अथ मरते हुए उसे नए रूप धि




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