राजस्थान लोकसाहित्य अध्ययन के आयाम | Rajasthan Loksahitya Adhyyan Ke Aayam
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामप्रसाद दाधीच - Ramprasad Dadhich
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इसमें कोई सदेह नही कि लोकसाहित्य, साहित्य कला के ्रष्ययने को प्रधुर
सामग्री प्रस्तुत करता है किन्तु हमे यदं एक मूलभूत सत्य सर्देव याद रखता
होगा भौर वहे यह कि लोकसाहित्य रचयिता के अह-चैतन्य, शास्त्रीयता गौर
पाण्डित्य के भावों से सर्वेथा रहित लोकमानस की सहज रचना हैं। भव यदि
इस साहित्य का मुल्याकन श्रलकार म्पि, पिंगल, नायक-नायिका भेद,
आधुनिक कथा-मिद्धातों के झ्राधार पर किया जाने लगा तो बह इस साहित्य
के साथ निर्मम अनाचार होगा । यह बात नहीं कि साहित्य कला का उपयुक्त
स्वरूप लोक-साहित्य में त्याज्य रहा है 1 रेस, ग्रलकार, छन्द-स्वरूप नागरक
नॉयिकार्ये--सभी लोक साहित्य में विमान हैं किन्तु शिप्ट साहित्य काष्ट ब
आग्रही स्वरूप तेकर वे वहाँ नही श्वाते ! लोकगीत श्रादिं मानव का उल्लाम-
मय सगीत है 1 (इएणणादपत०णड पपात दऽ एत्थ ९6० 7?010-5078 ०१
फशा)) कंन्नेय रिचमड ने भ्रपनी पुस्तक “९0७09 8०0 11० 7८०/।८' में कहा है.
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(वै काव्य हैं प्रयवा नही विन््तु काव्य के मधुर भाव से वे हमे मनमुग्ध कर देते
हैं। उनका प्रत्येक वर्ण কর্ণ से भो कुछ श्रधिक महत्व रखता है। न्दते महं
देवी शब्द है जिसने प्राचीन पादपो में सचरण किया है) लोकगीत में मुख्यत
स्वरश्रौरः सगोतकी प्रधानता है} मोत केवल शब्दो तव सीमित नहीं है।
लिखने के पश्चात् तो उसका रूप और भी विद्वत श्रौर निष्प्राण हो जाता है ।
अस्तु, लोकगोता वे” साहिप्यिक सौंदर्य का अध्ययन 701: 8$106005 की दृष्टि
से क्या जाना चाहिये ।
सौकपराहिव्य का अपना एक पृथक शिल्प-विधान, सोौन्दयं-गास्व है । लोक-
गायाग्रों (2४1309) में यदि प्रवन्ध-काव्य के लक्षणों की सरोज हुई ती चाहे
हमे श्रयवे सतोष के लिए कुछ लक्षण मिल जायें किन्तु वे हमारो शास्त्रीय
कसोटो पर पणत खरे उतर जाय, इसवी सभावना कम है। उदाहरण के
विए राजस्थानी लोकग्रायायें-पादुजी, निहालदे, डगडावत श्रादि को लीजिये
इनमे भले हो प्रवन्ध-काव्य क कुछ लक्षण मिल जाय किन्तु फिर भी ये प्रवन्ध-
काव्य कौ सफल रचनायें नही कटी जा सक्ती १ लौकमाया श्रौर लोकगीत मे
हमे लोक्सग्ीत को प्रधानता देकर चलना पड़ेगा | उपमा, इलेप और रूपक
अलकारो की अदुमुत छठा लोकश्ाहित्य में देखने को मिलती है। दोहा,
सोरठा, चव॑री, भ्राल्हा भ्रादि छल्दनव्थ भो लोकगीतो मे प्रयुक्त हुये है किन्तु
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