अदालत | Adalat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुन र्सि यह नाम उन लकीरों में टूट भी रहा था, जुड़ भी रहा था। मानो वह हवा में लटकते हुए प्रश्न को उत्तर दे रहा हो । धूल के होठों में से निकले हुए बोल ने जब उसके अपने कानों को छुआ, उसे लगा, जैसे वह चुप की आवाज उसके कानों में से होती हुई और उसके सारे शरीर के अंग-अंग में से होती हुई उसके पांवों की एड़ियों तक चली गई हो, और उसके पांव वहीं के वहीं उस फर्श पर जम गए हों । उसके मन में एक अजीब-सा डर पैदा हुआ । ये पांव आज से नहीं, शायद कई बरसों से यहीं खड़े हुए हैं, और वह जब अपने सरकारी पद की कुर्सी पर बैठने के लिए जाता है,उसके पांव वहां उसके साथ नहीं जाते '” और जब वह अपनी पत्नी के विस्तर में सोने के लिए जाता है तो उसके सारे अंग उसके साथ विस्तर में जाते हैं, पर्‌ उसके पांव उसके 'साथ नहीं जाते । . और उसे लगा--अब जब वह तीन बरस के लिए आज से भी ऊंचे पद को संभालने के लिए इस देश के बाहर जाएगा, उसके पांव उसके साथ नहीं जाएंगे। एक चुप हो चुके नाम की आवाज़ न जाने किस तरह धीरे-धीरे रांगे के समान भारी हो गई थी, और उसके पांवों की एड़ियों में जाकर इस तरह बेठ गई थी कि उसके पांव जहां कभी खड़े हुए थे, वहीं खड़े रह गए थे । और उसे लगा कि वह सदा अपने पांवों के बिना चलता रहां था, और वह ' सदा अपने पांवों के बिना चलता रहेगा। उसने एक गहरी सांस ली और आदिवासियों की एक प्राचीन कथा की तरह ' उन दिनों की बात सोचने लगा, जब उसके पांव हुआ करते थे । एक जवानी का देश होता था,जिसमें गंगा जैसे मन की कई नदियां बहती थीं। जहां-जहां सपनों के बीज गिरते थे, वहां-वहां बहुत हरे और करामाती पेड़ उग आते थे। अदालत १५




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