जीवन संध्या | Jeevan Sandhya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ :
6 MB
कुल पृष्ठ :
288
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवन-सध्या * १७
की असुविआा से, साथ हो इद्रतील के प्रश्नो का जवाब देने वी विपत्ति से भी ।
अपनी कन्या की हथेली पकड़वर डरे हुए से उद्दोने पूछा, “नीतू ये लोग कौन
हैं ? कौन हैं ये २?
नीता बहुत दिनो से सुशोभन से तिपट रही थी, इसलिए न वह दुखी होती
थी न परेशान । वहू बडी सहजता से बोली, “तुम्हारा भी जवाब नही पिताजी !
बाकई तुम बहुत भुलककड होते जा रहे हो । ये लोग सूचि ता बुआ के बेटे हैं न २!
“बेटे ? सुचिता के इतने बेटे हैं? मेरी सिर्फ एक लडकी है। समझी
सुचिन्ता, सिफ एक । जब इतनी-सी थी, तभी इसकी मा मर गयी। इसके बाद
तो खैर, सभी मर गये ।”” ऐसी स्थिति म सुचिता क्या अपने लडका से नजरे
मिलाती ? क्था वे लडको की उपस्थिति से वेखबर हो जाती ?
शायद यही सुविधाजनक होगा ।
शायद इसीलिए वे भी अत्यन्त सहजता से बोली, “वाह ! यह तौ स्रुव रही,
तुम सभी को मारे डाल रहे हो ? यह जो मैं हूँ | क्या मैं मर गयी हैँ २”
“अरे हा | हवा | तुम तो जिदा हो 17
सुशोभन माष्वस्त दए 1
लगा सुचिता के बेटे भी आश्वस्त हुए 1 उन्हाने सोचा, मा के कोई सम्बधी
होंगे। सम्बंध जरूर बहुत दर का होगा, तभी इन लोगा ते इह पहले कभी नही
देखा, न सुना । पूछा कुछ पागल-वागल लगता है। लेकिन ये लोग यहाँ आये
क्मो? क्या इन लोगो के यहाँ आन की बात थी ?े और इस बात को सिफ
सुचिन्ता ही जानती थी ? ताज्जुब है। और यह लडकी भी कब से सुचिन्ता के
इतना करीब हो गयी थी ?
नाम पूछने की असुविधा से सुशोभन मे मुक्ति दिला दो थी। इसीलिए सहज
होकर सुचिन्ता ने पूछा, “इतनो सुबह तुम लोग किस गाडी से आगी हो
नीतु २!
नीता हँस पडी, “उस दुर्भाग्य की कहानी को अय मत पूछिए बुआ । हम
लोग क्या आज आाये हैं ? रात भर तो वेटिय ফল में पडे रहे ।!!
“आखिर क्या २
“वया कर्ती ? भान वी बात तो शाम सात बजे को थो । गाडी तोन घटे
लेट आयी । उतनी रात को कहा मकान ढढती फिरती, यहां पहले कभी मायी
भो नदी थो ।”
“हो हो, तब तो कल रात तुम लागो को काफो परेशानों हुई होगी ? नीतू
अब झटपट नहा-धाकर बुछ खा-पी लो--सुशोभव, घुम भी तो नहाआग লা?”
“अमर नोतू इजएजत दे। ” सुशोभन न वहा ।
পন্থা बाबूजी, तुम भी नहा लो | बल नीद अच्छी नहीं आयी थो ।”?
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