भाजनपद संग्रह भाग - 3 | Bhajanpad Sangrah Bhag-3

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Bhajanpad Sangrah Bhag-3 by मगनलाल करमचंद - Maganlal Karamchand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मगनलाल करमचंद - Maganlal Karamchand

Add Infomation AboutMaganlal Karamchand

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
२, १६ अथ श्री शान्ति जिन स्तवन. राग केदारो शान्ति जिनेश्वर अलख अरुपी, अनन्त शान्ति स्वामीरे, निराकार साकार ठो चेतना, धारकओे निनामीरे. शा०॥१॥ परम ब्रह्मस्रुपी व्यापक, ज्ञानथफी जिनरायारे; व्यक्तियी व्यापक नहि जिनजी, प्रेमे प्रणमुं पायारे. शां० ॥ २ ॥ आनेदधन निर्मठ भश व्याक्ते, चेतन शक्ति अमततिरे, स्थिरोपयोगे शुद्ध रमणता, शान्ति जिनवर भक्तिर, गा० ॥ ই | कम खयीथी साची शान्ति, चेतन द्रव्यनी भगेर, शान्ति सेवे पुदगकथी अट, वेत्तन रुद्धि নু, शान्ति ॥ ४ ॥ चउ निक्षेपे शान्ति समजी, भाव शान्ति घट धारोरे, बुड्िसागर्‌ शान्ति लद्दीन, जल्दी चेतन तारोरें. शान्ति० ॥ ५ ॥ १७ अथ श्री कंथुजिन स्तवन. राग केदारो, कुधु जिनेश्वर करुणानागर, भावदया भंडाररे; चिदानदेमय चेतन मूत्ति रुपातीत जयकाररे ङुथ० ॥ १ ॥ त्रण भुवननों कर्ता ईश्वरे, कर्ती वादी परर, ष्टि कर्ता नदी ठे इश्वर, समजावे जिन दके, कुं० ॥ ९॥ निमित्तथी कक्तौ इश्वरमा, दोपो आगे अनकरे; चिना भयोजन जगनो कर्ता, दोय न इश्वर छेफरे. कु० ॥ ३ ॥ सृष्टि कार्य तो हेतु उपादान, कोण कहो सुविचारीरे, उपाढान इन्वरने माने, दोप अनेक छे भारीरे ई० ॥ ४ ॥ सृष्टिरप इष्वर ठरता तो, जड रूप थयो उदर; २




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now