कबीरपंथ और दरियापंथ (बिहार) का अध्ययन | Kabirpanth Autr Dariyapanth (Bihar) Ka Adhyyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
76 MB
कुल पष्ठ :
522
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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कबीर ने समस्त जीवाँ में आत्माँपम्य की भाषना कूट-कूट कर भरते कै
क्र शे सवर्य खक ईश्वर का वास स्वीकार किया है, जिससे किसी भी प्रकाए से
दैत र्वं फ्िधा' की परिस्थिति उत्पन्न न ही | +--
जे पै जीव दह जानत छ, तौ माहि জুলি बताओ ।
रकमेक रमि द्या सवति मे» ती काहे মলোলাঁ 11
तारण तरणे जनै ঘন নিত লগ নত ল আলা ।
एक रोम देल्या' सबाहिन में, कहे कबीर मन লালা 11 ४२ 11
-- कठी ग्रन्थावली, पृ० १०५५ (सभा)
ठा0 रामभुमार वर्मा के ऋतार कबीर ने तत्कालीन परिस्थितियाँ' का' बल रुकत्र कर
युगधर्म को पहचान कर एक निमौकि सम्प्रदाय की सृष्टि की जिसमें रकैश्वरवाव
रर् ˆ समत्व सिद्धान्त ˆ की प्रसवं भावनः थी । रकरश्वर् दी दृष्ष्टि मैं * कीडी
গাঁ “ভুল ˆ समान है, ब्राक्षा ओर् चण्डा में कोई येद লী दौनों में एक ही
ब्म की ज्यति है,जिप्न प्रकर कती ओप्स्फेद गाय में एक हो रंग का दूध है 1
प्राचीनकाल से হী শঁজ্লটোুদনি कै ছিহ মস্ত खान को प्रतिष्ठा दी
गए हे, फिन्सू इमका' ताल्विक विवैचन करने पर पता चलता है कि इस प्रकार के ज्ञान
से उस पचिरतन सत्य की परश्ध सम्मव सहीं । गुराणकाल से ही ग्रन्थ स्मान का प्रचा
बढ़े ही धूमधाम से चला आ रृहा' था, किन्तु उचित विवैक न हाँगे के कारण रेसे
ज्ञानी न्णां शष्ट हकर समाज कं वातावरण की दुषित कर रहे थे, इसी लिए
ইউ ज्ञान के प्रति पृएग उदासी नता' प्रवार्शि करते छु्ट संतमतावला' म्बया नै नन्त साधना
হর্ন অহন के पश्चात उत्पन्न होने वाले आत्मज्ञान पर जौए वियः है ! कीर नै
स्पण्ट कहा §ै : ~~
पथो पडि पदि जय सुआ, पंडित भयाः न कौय |
एके अच्द् पैम का, पढ़े सी पंछित होथ |
কাটি জার, কতা খাত রাজ বাজ , রা পারা ক 1, ॥ 3, 8. 1.11 1 7, 1 গার (হার রিং যা ওর কার ররর রানা হা এ, এরা ए 1 ए. 1 1 7 ए}; 5 গার জামা রাড পরী, মাও বত জাম সারা, রাত পাচা গো তার রাত, জারা এ 2 ह |
१, से क्यीर, १० २३, ढा० रामबुमार वर्मा
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