सुंदरसार | Sundarsaar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
322
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३१ )
दिवा है नप्र चोषा बूघर है साहुकार
सुद्र जनम छियो तारी घर भाइकें |
पुन्न की है चादि पति दई है जनाह् त्रिया
फह्मो समझाई स्वामी कहों सुखदाइके ॥'
स्वामी सुख कही सूत जनभेमो सही पे
बैराग छगो वही घर रहै निं माई कै ।
एकदस वरषमें व्याग्यौ धर ण्ठ खव
दात पुरान सुने घानारसी जाद के 1४२२)
सबत् १६५० में दादूजी जब दूखरी নাহ্ জীব में पधारे तब
स॒दरदास जी सात बष फे ही गए थे। माता पिता भक्तिपृ्वक
दशनों को आए और उन्होंये सुदरदास जी को उनके चरणों म
रख दि्या। स्वामरीजी न बालक के सिर पर हाथ रख कर बहुत
प्यार से कहा कि सुद्र ভু আনা! | कोई कहते ই स्वामी
जी न कद्दा यह बालक बड़ा सुदर हे | निदान “सुद्रदास?
तब ही से नाम हुआ और व उस्री दिन से दादूजी के शिष्यों
म्ह गए)
दादूजी की “जन्म परचयी” में दादूजी क शिष्य जनगों
पालन इस प्रणम को छिखा है--
पुत्र ग्योखा महिं कियो प्रबेसू | षमदास अरू साथो जेसू ।
बाछक सुदर खेबग छाजू । मथुरा बाई हरि सों काजू ?
( विश्वाम्म १४ )
5 १९ म
स्वय सुद्रदासजी ল गुर सम्प्रदाय! म्रथमे किलादे--
१५ श ক
“दादूजी जब ग्योखा आये | बालपन লহ জুহান বাহ +
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