मेरी कैलाश-यात्रा | Meri Kailash-Yatra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
151
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १० |
धर हे । इसलिये दो तीन सज्जन जो मुझे पहुंचाने के लिये
शहर से आने वाले थे उनकी मुझे प्रतीक्षा करनी पड़ी। साढ़े
पांच बजे के करीब वे महाशय आ गये। ए कने मेरा बोका उठा
लिया | परमात्मा का नाम लेकर में यात्राके लिये निकला |
अज्मोड़े से कैलाश की ओर जाने में पहले वागेश्वर आ्रातां
है ओर वागेश्वर अल्मोड़े से २६ मील की दूरी पर है। तीन
मील तक तो हम लोग पांच जने थे । इसके बाद मेने शहर
के तीन सज्जनों को लोटा दिया । में और बिद्यार्थी हरिद्त्त
दोनों वागेश्वर को ओर चले । हरिदत्त का सामान उठाने के
लिये वागेश्वर तक साथ ले लिया था।
इधर के पड़ाड़ो पर चीड़के वृक्ष ही अधिक होते हैं।
जिधर दृष्टि दोड़ाओ, चीड़ ही चीड़ | गवनंमेटका करोड़ो रुप-
ये की आमदनी इन वृक्षों से होती है। प्रत्येक वृत्तके निम्नभाग
के किसी स्थान की छाल प्रगट कर उसके नीचे एक मिद्धीका
गिलास सा लगा देते हैं; पेड़ कां तेल धीरे धीरे उसमें टपकता
ग्हता है । इसीका तारपीन ^1८1€1111716 बनाया जाता है |
হস सभी वृत्तों के नीचे ऐसे गिलास लगे हुये देखने
आये |
पहाड़ी सड़क में चढ़ाव उतार होता ही है कहीं दो मील
घढ़ाई तो तीम मील उतार | आठ आठ दस द्स घर जहां बने
हों वही गांव है। पहाड़ो के बीच चलते इ॒ये यांत्रीको दूर से घर
चमकफते हुये दिखाई देते हैं । घर साफ खुथरे चूने से अच्छी
प्रकार पुते इये धूपमें भले बोध होते हैं । खोढियों जैसे खेत ए
के ऊपर पक, अपनी हरियाली से आखों को तृप्त करते हैं।
ऊंचे ऊंचे पहाड़ों पर गाय भेंस वकरी चरते इ दिखाई दते हें ।
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