रवीन्द्र - द्वादशी | Rabindra-dwadashi

Rabindra-dwadashi by हजारी प्रसाद द्विवेदी - Hajari Prasad Dwivedi

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हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।

द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुभा ४ ही सर्वेशी श्रौर पांगुली मानो एक श्रन्ध अनुमान झाक्ति के द्वारा बालिका की ममंवेदना समभ लेतीं श्र सुभा के नजदीक आकर उसकी बाहु पर श्रपने सींग घिसकर निर्वाक व्याकुलता से धीरज देतीं । इसके श्रलावा सुभा के मित्रों में एक बकरी ग्रौर बिल्ली का बच्चा भी था किन्तु उनसे सुभा की इतनी समानता की मित्रता न थी फिर भी वे यथेष्ट अ्रनराग प्रकाशित करते । बिल्ली का बच्चा किसी भी समय शभ्राकर सुभा की गरम गोद में सुखनिद्रा के लिये प्रस्तुत हो जाता भ्रौर यदि सुभा उसकी ग्रीवा श्रौर पीठ पर हाथ फेरे तो उसकी निद्रा में विशेष सहायता होगी इंगित से यह भी समभा देता । ३ उन्नत श्रेणी के प्राणियों में सुभा का श्रौर एक मित्र था । किन्तु उसके साथ बालिका का ऐसा सम्पकं था यह निर्णय करना कठिन है क्योंकि वह भाषा विशिष्ट प्राणी है इसलिये दोनों में समभाषा नहीं थी । गोसाइयाँ के छोटे लड़के का नाम प्रताप था । वह नितान्त निकम्मा था अ्रौर कभी काम-काज करके परिवार की उन्नति कर सकेगा यह झ्राद्या उसके मां-बाप ने त्याग दी थी । निकम्मों की सुविधा यह हूं कि परिवार के लोग उन पर विरक्‍त जरूर रहते हूं किन्तु वें लोग निःसम्पकं लोगों के प्रियपात्र हो जाते हें--क्योंकि किसी काम में झ्रावद्ध न रहने के कारण वे सरकारी सम्पत्ति के रूप में हो जाते हें । शहर में जैसे गुहसम्पकंद्ीन दो-चार सरकारी बगीचों की श्रावस्य-




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