कुण्डली चक्र | Kundali Chakra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kundali Chakra by वृंदावनलाल वर्मा - Vrindavan Lal Verma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वृन्दावनलाल वर्मा -Vrindavanlal Varma

Add Infomation AboutVrindavanlal Varma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
कुरडली चक्र ११ रतन हठ-पुवंक बोली--'बहुत तो पढ़ ली । हाल हारमोनियम ही रहने दो ।” अ्रजितकुमार ने ललित की भ्ररुचि देखकर रतन से कहा --'श्राज के लिये इतना ही बस है । पढ लो, कल फिर देखा जाया ।' रतन ने मान लिया, शभ्ौर कुछ उदास होकर हारमोनियम बन्द कर दिया । पुस्तक हाथ मे ले ली । ललित ने कहा--'थोड़ी देर किताब पढ़ने के बाद फिर हारमोनियम सीखना । मास्टर साहब, वह ठुमरी पुरी सिखलाकर जाइयेगा ।' प्रजितकुमार ने कोई एतराज नहीं किया । भविष्य की ने रतन के खेद को हटा दिया, श्रौर वह ध्राग्रह के साथ ग्रन्थ-पाठ में लग गई । ललितसेन बैठक में श्रा गया । बेठा ही था कि दो भले मानस एक की श्रवस्था उतरने को थी, दूसरे की चढ़ने को । पहले व्यक्ति के चेहरे पर चिताप्रों की रेखाये थीं, भर व्याधियों का इतिहास अंकित था । सोती .हुई सी श्राखों की तली में सहसा प्रवतन छिपा मालूम पड़ता था । दूसरे व्यक्ति की २३-२४ वर्ष की श्रायु होगी । सतेज नेत्र, हढ़ प्रोष्ठ-सपुट श्रौर सुडौल श्राकृति । परन्तु कभी कभी श्राखे नीची होकर नायें-दायें देखते लगती थीं । ललित ने इन लोगों से श्राने का कारण पुछा । प्रघेह व्यक्ति ने कुछ कहने के लिये होठ पर पहले जीभ डाली, श्रौर सम्भला था कि युवक बोला---'इनका नाम बादू शिवलाल है । मऊरानी पुर मे रहते है । कई मोजों में श्रापकी जमींदारी है । कुछ बरसों से फौजदारी श्रौर दीवानी मुकदमे लड़ते-लड़ते ऋण हो गया है । साहुकार चाहते हैं कि या तो वह अपनी जमीदारी में से कुछ भाग उनको बेच दे, या रुपया इकट्ठा इसी समय दे दें। कुछ रुपया इसी समय देने करा सवाल नहीं है । दो बरस से मैं श्रापकी जसींदारी का मुन्तजिम हूं । बहुत सम्भाला, परन्तु रुपया इकट्ठा नहीं हो पाता है । -शऋप सजातीथ हैं, इसलिये इस लोग श्राप के पास दौड़े झाये हैं ।'




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now