सुभाष चन्द्र बोस के दस्तावेजं भाग - 1 | Subhash Chandra Bose Ke Dastabej Part 1

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Subhash Chandra Bose Ke Dastabej Part 1 by डॉ प्रभाष कुमार - Dr. Prabhash Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुभाषचन्द्र बोस व्हे दस्तायेग हैं। लेकिन दरअसल हम मनुष्यों के वेश में ऐसे पषु हैं जिनमें मानवोचित गुणों का कहीं पता ही नहीं चलता। बल्कि कहना यह चाहिए कि हम पषुओं से भी गए बीते हैं क्योंकि हम में बुद्धि और चेतना है जो पषुओं में नहीं होती। जन्म से ही हमारा पालन-पोषण आराम से और विलासिता के बीच होता है और इसीलिए कठिनाइयों का सामना करने की हमारी क्षमता समाप्त हो जाती है। हम अपनी इच्छाओं के स्वामी नहीं बन पातें। हम जीवन भर अपनी कामनाओं के दास रहते हैं और जीवन हमारे लिए भार बन जाता है। कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है कि आखिर हम बंगाली कब पूरी तरह मनुष्य बनेंगे? कब पैसे के लिए अपनी लालसा पर विजय पाएंगे और जीवन के उच्चतर मूल्यों के बारे में सोचना आरंभ करेंगे? कब वे सभी मामलों में स्वावलंबी बनेंगे और शारीरिक मानसिक तथा आध्यात्मिक उत्थानों के लिए प्रयत्नशील होंगें? अन्य देशों की तरह वे कब आत्मनिर्भर बनेंगे और दुनिया को बता देगें कि उनमें भी पौरूष है। यह देखकर मुझे गहरा दुःख होता है कि आजकल पश्चिमी शिक्षा के प्रभाव से बहुत से बंगाली नास्तिक बनते जा रहे हैं और अपने ही धर्म को ठुकरा रहे हैं। मुझे तब गहरा आघात लगता है जब मैं देखता हूँ कि आज के बंगाली शान-शौकत की जिन्दगी की ओर बिना सोचे-विचारे ही बढ़ रहे हैं और चरित्रहीन होते जा रहे हैं। यह कितनी दयनीय स्थिति है कि आजकल के बंगालियों ने अपनी ही राष्ट्रीय वेश-भूषा को तिरस्कार की दृष्टि से देखना सीख लिया है। मुझे इस बात से गहरी व्यथा होती है कि आज के बंगालियों में बहुत कम ऐसे लोग हैं जिन्हें सुदृढ़ स्वस्थ और ओजस्वी व्यक्ति कहा जा सके । और इस सबसे ऊपर यह देखकर दुःख होता है कि आज के भद्र बंगालियों में बहुत कम ऐसे हैं जो प्रतिदिन ईश्वर प्रार्थना को कर्त्तव्य समझते हों। माँ इससे अधिक कष्टदायक और क्या हो सकता है कि आज के बंगाली आराम-तलब संकीर्ण विचारों वाले चरित्रहीन ईर्ष्पालु तथा परायों के कामों में दखल देने वाले हो गए हैं। इस समय हम शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और अगर उद्देश्य केवल इतना है कि हमें नौकरी और पैसे मिलें तो हम इस शिक्षा और अपनी मनुष्यता के 2




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