राजपुताना भाग - २ | Rajputana Part - २

Rajputana Part - २  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गा ्त च्् रथ ७ 7 लन्ड और उस समय सुर्य की बिरण भी अधिक सलोधवों चोर होती हैं । सितम्बर से माच तक रात का समग्र दिन स बडा हांता तर्थ की किरणें भी इतनी सीधी श्रोर तेज़ नहीं होतीं जितनी साच से सितम्बर तक होती हैं । ऐसी ढ्शा में तुम कह सकते हो कि सात के कोन को हो ऋ पूछ कि से महीनों में गर्मी की ऋतु होगी और कोन से महीनों से. सर्दी की । हवा की सर्दी-गर्मी दिस के छोटे बढ़े होने पर तथा सूयें को किरणों पर निभर होती है । सरी वात यह है कि जगह जितनी ऊँची होती है उतनी अधिक वह ठंडी होती है, यहीं कारण है कि थ्ाबू पहाड झ्रासपास के मैदान की अपना अधिक ठंडा है । पर भी निभर होती है । र्तीली जमीन शीघ्र ही गर्म हो जाती है. श्र हवा को जल्दी गरम कर ब्ती है । इस्त जल्दी ठंडी हो नाती है श्ौर हवा को भी ठडी कर देती ह | इसी कारण स्तीले सुल्कों में दिन में कड़ी गर्मी और रात में डक हो जाती है यहाँ तक कि सर्दी की तु सें कभी कभी पाला पढ़ जाता है और तण के निकलने पर पियल जाता है । दिनरात को लम्बाई, सूयें की ण, जगह को ऊँचाई और जसीन की दशा पर हवा की स्दों- हाता है । ' गर्मों की ऋतु--यह लगभग हाली के वाठ शुरू होती है और करीब * [... हक.




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