शंख - सिन्दूर | Shankh Sindur
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रमानाथ त्रिपाठी - Ramanath Tripathi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चन्द्रा ने माछरागा को देखा तो काप गई। यह झ्गडाल औरत
ससुराल वालो से लडकर मायके मे पडी रहती थी । छोग इसे इसके मुह्
पर रागादी कहते किन्तु पीठ-पीछे माछरागा अर्थात् मछली खाने वाली
चीर कहते । कोई इसे डायन समज्ञता, कोई इसे कुटुनी कहता ।
यह थी तो काली-कलूटी किन्तु साडी पहनती चटक रंग की । केश
खिचडी हो गए थे, किन्तु माग मे सिन्द्र की सदा बहार रहती । कान
से कर्णफूल और नाक में फूल पहनकर पान खाने से काले पड दात
निकालकर बाते करती फिरती । यह् किसी एक स्थान पर स्थिर नही रहती ।
गाव-गाव घूमना भौर परिवारो मे झगडा कराना इसका काम था ।
वह हाथ पर हाथ मारकर नखरे से बोली, “हाय बिद, तुम्हारे ऊपर
जवानी का रग एेसे बरस रहा है, जसे हिजर गाछ पर बसन्त बरस गया
हो या शरद पूनोकी रात चादनी झर रही हो ।*
चन्द्रा को इस ओौरत के रोम-रोम से चिढ थी, उसकी बातो का एक-
एकं शब्द उपे दुगेन्ध-भरा प्रतीत होता था, किन्तु यह थी अत्यन्त बखे
डिन, भतः चन्द्रा नही बोरी । चन्द्रा ओठ से ओठ भीचे हृढतापूवेक
चदान-सी खडी रही ।
माछरागा वहा से आगे बढ गई ।
४
मृदंग, करताल और एकतारा बज रहे थे। आगे-आगे एक दीघेकाय
दुबला ब्राह्मण जा रहा था । इसके प्रशस्त छलाट पर चंदन और गले में
रुद्राक्ष की माला थी। यह रामनामी दुपट्टा कन्धो पर धारण किए था।
यह गौर वर्ण ब्राह्मण मंजीर बजाता हुआ चल रहा था, इसके पीछे शिष्य
लोग मनसा-देवी के गीत गाते हुए चरू रहै थे । सभी इतने भाव-विभोर
होकर चल रहे थे कि सभीकी आखों में आसू थे । किसीको भी ध्यान नहीं
रहा कि सूर्यास्त होने को था और वे सही रास्ते पर न चलकर गलरूत
रास्ते पर बढे जा रहे थे । /+
१६
User Reviews
No Reviews | Add Yours...