तंतुजाल | Tantujaal

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Tantujaal by रघुवंश - Raghuvansh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ने कमरे में प्रवेश किया, पदचाप से समझ लिया--आरती है। आरती खड़ी है-मौन । वह जानती है कि बहेन जी को उसका आना ज्ञात हो गया है | उसने धीरे से आँखें खोल दीं--आरती, तुम ।” हानं की मिटती हुईं आवाज़ के साथ ही उसका प्रश्न डूब सुका है। आरती अपनी जीजी के मानसिक उतार-चढ़ाव से परिचित है--“जीजी, दातादीन बाज़ार गया है ।” युवती थके भाव से कह वेती है---“अच्छा ।” और उसकी प्के किर क्षप जाती है । पटक गिरते-गिरते पहाड़ी श्रेणी के बृत्त पर चढ़ने वाली सड़क की एक झलक मिल जाती है ।...चह्टानों के बीच काली रेखा पर दौड़ती हुईं कार. . .हाने का स्वर उसके मन से बिल्कुछ मिट चुका है, पर उसकी अनुगूंज अब भी शेष है। यह स्वरष्टीन गू धीरे-धीरे विचार-» खछा के रूपमे बदरु जाती ै...भद्या भाज आयेंगे. ..तार आया है..,.और उस' दिन पेषे ही भ्या भाये थे । ट्रेन लम्बी सीटी देती हुई प्लेट-फ़ास पर धीरे-धीरे रुक रही है। चच्चा के साथ, पीछे-पीछे वह कम्पार्टमेंट के सामने पहुँचती है। एक किशोर साधारण कुरता-घोती में दरवाजे के सहारे हाथ जोड़े खड़ा है । राजू और सन्ध्या हैं कि दौड़कर ऊपर से हाथ पकड़ कर खींच रहे हैं। बह अत्यन्त संकोच के साथ दोनों हाथ जोड़ छेती है। किशोर सृतु भाव से झुस्कराता हुआ चच्चा के पैरों पर झुक जाता है। यह कैसे हैं ! ...इस सीधे से प्रभावहीन डके कै भुस्कराने के ढंग में अवश्य कुछ आकर्षण है ।...परिचय कराया जाता है, चच्चा भी कैसे हैं, उसकी लज्जा भा रही है। छेकिन अच्छा ज़रूर लगता है, खरीक्ष के बावजूद भी । छगता है..,शायद उसकी पट सकेगी, खूब भी पट सकती है |... और द्यामू ,. उसकी बात से भन रूञ्जा-गानि से भर भाता दै । कितना भसम्य व्यवहार है उसका...भौर इस पर अपने को पटीकेट शा भवतारं गिनता है । क्या कह गया उस दिन !...मौर उन्होंने देखा, क्‍या था उसद्ष्टिमं। सदी हदं रि मे...कोध, उद्धे... न्ठी, पेसा तो कठ




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