महाभारत-कथा | Mahabharat-Katha

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Mahabharat-Katha by श्री पू. सोमसुन्दरम - Shri Purn Somsundaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सन्नणा ७ बाद भी दुर्योधन न्यायोचित रूप से सधि के लिए तेयार न हो तो सब लोग सब तरह से तैयार हो जाय और हमें भी कहला भेजें।” অই निदचय हो जाने के बाद श्रीकृष्णं अपने साथियो सहितं दारका लौट गए । विराट, दरुषद, युधिष्ठिर आदि युद्ध की तेयारिया करने मे कग गए । चारो ओर इत भेजे गए । सब मित्र राजाओ को सेना इकटटी करने का सदेशा भेज विया गया । पाडके के पक्ष फे राजा लोग अपनी-अपनी सेना सज्जितं करने लगे । इधर ये तैयारिया होने लगीं उधर दुर्योधन आदि भी बेकार नहीं बेठे रहे। वे भी युद्ध की तैयारियो में जी-जान से लग गए। उन्होने अपने मित्रो के यहा दूतो हारा सदेशे भेजें कि सेनाए इकद॒ठी की जाए। इस तरह सारा भारतवर्ष युद्ध के कोलाहल से गृजने लगा । राजा लोग इधर से उधर ओर उधर से इधर दौरे करते सैनिको के दलल-के-दल जगह- जगह आते-जाते रहते उनकी धूम से पृथ्वी काप जाती थी । उन दिनो भी युद्ध कौ तेयारिया जाजकल कौ-सी ही हृ करती थौ । दरुपदराज ने अपने पुरोहित को बुलाकर कहा-- विद्वानों में श्रेष्ठ ! आप पाडवो को ओर से दूत बन कर दुर्मोधन के पास जाय ! आप पाडवो के गुणो से मली-भाति परिचित है! इसी प्रकार दुर्योधन के गुण भी आपसे चि नहीं हं । आप जानते ही हं किं धृतराष्ट्र कौ सम्मति ही से पाडवो को धोखा दिया गया । विदुर ने न्याय कौ बत कही तो जरूर, ठेकिन धृतराष्ट्‌ ते उनकी सुनी नहीं । राजा धृतराष्ट्‌ पर दुर्योधन का असर ज्यादा है । आप धुतराष्ट्‌ को धमं ओर नीति कौ बाते समक्नाए । विदुर तो हमारे ही पक्ष में रहेंगे। इस कारण सभव है, भीष्म, द्रौण, कृप आदि सन्रियो ओर योद्धाओ (सेनानायको) मे मतमेद हो जाने पर उनमें एकता होना बहुत कठिन हौ जाय । एकता अगर हुई भी तो इसमें काफी समय ক্যা जायगा । इस असं मे पाडव युद्ध की काफी तेयारी कर सगे उधर जब्रतक आप्र हस्तिना- पुर में सधि-चर्चा करते रहेंगे तब तक उन लोगो की तैयारिया धोर्मी पड़




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