यूरोप का इतिहास | Europ Ka Itihas

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : यूरोप का इतिहास  - Europ Ka Itihas

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about लाल बहादुर वर्मा - Lal Bahadur Varma

Add Infomation AboutLal Bahadur Varma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
8 यूरोप का इतिहास गैटती है, विचारों और कलाओं के क्षेत्र में फिर से, जीवन लौटता दिखाई पड़ने लगता है और इतिहासकार उसे पुनजागरण की संज्ञा दे. देता है । यूरोप के इतिहास में पाँचवीं-छठी शताब्दी ईसा पूर्व के यूनान के छोटे-छोटे राज्यों में मानव-सभ्यता का अभूतपुर्वे विकास हुश्रा । धीरे-धीरे सुकरात, श्रफला- तृद (प्लेटो), श्ररस्तू, यूरोपिडीज, पाइथागोरस, हेरादोतस और इनके জি अ्रवेक दाशंनिकों और विचारकों ने मानव-ज्ञान के विभिन्‍न श्रायाम प्रस्तुत किये । एथेन्स में एक ऐसी नागर सभ्यता पनपी जिसकी विराटता उसके विशाल भवनों और मूर्तियों में भी दिखाई पड़ती थी। फिर धीरे-धीरे इस सभ्यता का पतन हुआ ओर रोमन साम्राज्य के विस्तार के साथ एक नया केन्द्र रोम में स्थापित हुआ । इस साम्राज्य के काननों, व्यवस्थाओ्रों और भवनों में भी यूराप के प्रादमी ने उन्नति की, कई मंजिलें तय कीं । ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी ग्राते-आते इस सभ्यता का भी पतन शुरू हो गया श्रौर बरबंर जातियों के आक्रमण के दबाव में यहाँ की उपलब्धियाँ छिन्त-भिन्‍न हो गईं । यूरोप पर अन्धका र छाने लगा । ऐसा नहीं था कि वहाँ का' समाज निष्क्रिय हो गया' हो । विचारों के क्षेत्र में ईसाई भिक्ष और श्रन्य विद्वान्‌ कुछ न कुछ करते ही रहे लेकिन पहले श्ररबों फिर तुर्कों के बढ़ते प्रभत्व ने उन्हें श्रातंकित और अन्तमंखी बना दिया । तैरहवीं शताब्दी के बाद जैसे भोर की हवा चली। यूरोप ने प्रंगड़ाई ली । इटली के नगरों में यूनान और रोम की उपलब्धियों की याद ताजा होने लगी । बढ़ते व्यापार ने नगरों का विस्तार किया था। इन नगरों में एक महत्त्वाकांक्षी भश्रौर अपेक्षतया उदार नया मध्यम वर्ग जन्म ले रहा था जो मध्ययुग की रूढ़ियों के बोभ से मुक्ति चाहता था । यहाँ कुछ नया हो सकता था, पुराने को नया रूप देना सम्भव था। इसलिए विचारों, साहित्य श्रौर कला के क्षेत्र में यूनान और रोम से प्रेरणा लेकर मनुष्य ने एक ऐसे समाज की रचना शुरू की जिसमें यथास्थिति के प्रति मोह न हो, जहाँ मनुष्य श्रपने बन्धनों को काट सके, जहाँ धर्म केन्द्रित समाज (11160००॥77० 80००४) के स्थान पर मानव केन्द्रित समाज (80४00790०थाए10 $02० ०५ ) बन सके जिसमें व्यकत्रित और उसकी समस्त सम्भावनाओं को उचित स्थान मिल' सके। इसी प्राचीन यूरोप की प्रेरणा के आधार पर नये यूरोप के निर्माण के प्रारम्भ को पुनर्जागरण कहते हैं परिस्थितियाँ जिस यूरोप मे पुन्जागरण सम्भव हृश्रा पझर्थात्‌ मध्ययुगीन यूरोप, वहाँ का समाज रूहि-प्रस्त था। सामन्तवादी समाज में चच का प्रभाव जन-जन




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now