बीसवीं सदी के अन्तिम दशक के उपन्यासों में स्त्री-विमर्श का अध्ययन | Biswi Sadi Ke Antim Dashak Ke Upanyason Mein Stree-Vimarsh Ka Adhyyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
299
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था और जीवन के हर क्षेत्र मे पुरूष के समान ही
प्रगति के समान अवसर उपलब्ध थे। स्त्री को पराधीन बनाने बाली
मनोबृत्ति का आरम्भ तो मध्य एशिया की कुशाण जाति से होता है।
पाश्चात्य विद्वान जानस्टुअर्ट मिल ने अपनी पुस्तक सब्जैक्शन
ऑफ वुमैन ने स्पष्ट किया है कि स्त्रियो को पुरूषो से बढ चढकर बताये
जाने के गीत तो सर्वत्र गाये जाते हैँ पर यह सब कुछ उन्हे प्रसन्न रखने
के लिए ही होता है जब कि व्यवहार मे ठीक इसके विपरीत दृष्टिगोचर
होता है।
नारी जागृति एव स्वतन्त्रता के लिए प्रयास सदा से होते रहे है
चूकि यह मामवोचित अधिकारो को लेकर अठाया गया प्रश्न था अत विश्व
के किसी भी देश मे यह चिन्गारी फूट पडी माध्यम भले ही कोई एक
महिला बनी हो किन्तु यह आन्दोलन पूरे विश्व को अपने चपेट मे लेकर
ही रहा। जिसका परिणाम यह हुआ कि सदियो तक घृणा तिरस्कार
अपमान का घूँट पीती नारी पुरातन मान्यताओं, पर परम्पराओ,
रीति-रिवाजो के विरूद्ध आवाज तो उठा रही है।
समानता के अधिकारों के लिए पहली बार रोम की महिलाओ
ने सन 43 वीसी मे शखनाद किया था। उनका प्रतिनिधित्व सुप्रसिद्ध
रोमन वकील की पुत्री होटैनेसिया' कर रही थी। उन्होने राष्ट्र के सर्वोच्च
पदाधिकारी के सामने एक ही प्रश्न रखा कि नारी को पुरूष की अपेक्षा
हीन ओर तिरस्कृत दृष्टि से क्यो देखा जाता है? क्षमता एव कार्य दक्षता मे
वह पुरूषो के साथ बराबरी कर सकती है फिर क्यो उसे शिक्षा एव
प्रशासनिक कार्यो मे आगे नही बढाया जाता है उनके पिता स्वय इस
विषय के प्रतिपादक थे। यद्यपि उन्हे उस समय आशिक सफलता मिती
किन्तु सम्पूर्ण विश्व मे नारी जागृति लाने के लिए यह चिन्गारी सिद्ध हुई |
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