आधुनिक खड़ीबोली काव्यभाषा के विकास में प्रसाद का योगदान | Adhunic Khadi Boli Kavya Bhasha Ke Vikas Me Prasad Ka Yogdaan

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Adhunic Khadi Boli Kavya Bhasha Ke Vikas Me Prasad Ka Yogdaan by सत्य प्रकाश मिश्र - Satya Prakash Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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का आरम्भ ही गद्य से हुआ। इस मामले में वह अपनी संगातिया उर्दू स भी भिन्न हो पुनजगिरण, वैचारिक जागृति और गद्य का विकासः अन्तर्सम्बन्ध - इस विपरीत विकास क्रम में हिन्दी साहित्य का आधुनिक काल जिसका आरम्भ भारतेन्द के रचनाकाल के साथ माना जाता है, हिन्दी गद्य कं विकाम का काल भी हे! भारतन्दु से पूर्वं रीतिकाल के सामन्तीय दरबारी परिवेश मं चमत्कार, अतिशयोक्ति ओर श्रृंगारपरक साहित्य कौ ही प्रधानता रही, जनजीवन ओर जनचतना स॒ विमुख रहन कं कारण गद्य का विकास प्रायः अवरुद्ध रहा। किन्तु उन्नीमवीं शताब्दी में पाश्चात्य सभ्यता ओर संस्कृति कं सम्पकं से जो पुनर्जागरण आया, उसका सीधा प्रभाव साहित्य पर पडा राजा राममाहन राय, कशवचन्द्र सन, दयानंद सरस्वती ओर स्वामी विवेकानन्द इस पुनजगिरण कं सूत्रधार बने ओर इस पुनर्जागरण स॒ उत्पन्न वेचारिक जागृति का साहित्य मेँ प्रतिफलन रीतिकालीन दरबारी श्रंगाग्किता स अलग आधुनिक सामाजिक चेतना के साथ हुआ। जनजीवन की इस अभिव्यक्रित क लिये गद्य अनिवार्य आवश्यकता बन गई और खडीबोली ने जो अपन ठठ रूप में दश के कई भागों में बोली जाती थी और उन्‍नीसवीं शती तक उत्तर भारत की शिष्ट भाषा हो चुकी थी, गद्य के क्षेत्र में सहज ढंग से प्रवेश किया। खडी बोली के विकास मे फोर्ट विलियम कॉलेज की भूमिका: छा गद्य के क्षेत्र में खडीबोली की प्रतिष्ठा ने काव्यजगत में उसक प्रयोग की पीठिका तैयार की, यद्यपि उसकी स्वीकृति लम्बे अन्तराल के बाद, आधुनिकता का । 'मेथिलीशरण गुप्त ओर आधुनिक हिन्दी काव्य भाषा का विकास'-आलोचना, अक्टूबर दिसम्बर 86, पृ0-137, नामवर सिह। [3]




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