प्रयोगवादोत्तर हिंदी काव्य के व्यंग्य का स्वरुप विकास | Prayogvadottar Hindi Kavya Ke Vyngya Ka Swaroop Vikas

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Prayogvadottar Hindi Kavya Ke Vyngya Ka Swaroop Vikas  by डॉ मालती सिंह - Dr. Malti Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8 गिलबर्द हाइट भी ' सेटायर ' शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द ' सैतुरा ' से मानते हे, परन्तु उसका अर्थ परनिदा के रूपमे न करके भिन्न रूपमे करते है ----- “ सेटायर का नामकरण लैटिन शब्द ' सैतुरा ' के आधार पर हुआ है, जिसका अर्थ प्रारम्भिक तौर पर ' परिपूर्ण, ' होता है । पुन यह पूर्ण, विरोधी चीजों का मिश्रण देता है । ऐसा लगता है कि यह भोजन सम्बन्धी शब्दावली का अग रहा है । ग्रीक भे प्रचलित ' सैटिर ' | 55८०४ | शब्द से भी इसे, सम्बद्ध किया गया है, पर अधिकाशत इसका निषेध ही हुआ है । गिलबर्द हाइट के शब्दों मे ----- इस नाम का कोई सम्बन्ध ' सैटिर ' कहे जाने वाले रोएँदार , अशत मानवीय, अशत पाशविक, व्यवहार मे प्राय बकरे जैसे रूक्ष, असभ्य ग्रीक प्राणियों. से नहीं है । “ 'सेटायर' शब्द का सम्बन्ध ' सैटरस ' नामक विचित्र जन्तु से भी माना जाता है - “ व्यंग्य | सेटायर | का नामकरण सैटरस जैसे विचित्र जन्तु से किया गया है । लिवोन्ड्ाइनिक्स नामक व्यक्ति ने सर्वप्रथम इसको प्ररष्कृत करके दृश्य - काव्य के रूप मे प्रस्तुत किया । यह एक यूनानी गुलाम था । इसने नाटकों भे व्यंग्य का प्रयोग किया ।* इस प्रकार ' सेटायर ' शब्द की उत्पत्ति एवं उसके साहित्यिक रूप के पीछे 'सैतुरा' के परनिदा वाले अर्थ, के साथ ही ' सर्टरस ' जैसे विचित्र जन्तु की प्रेरणा तथा पूर्ण विरोधी चीजों के मिश्रण के अर्थ, में भोजन सम्बन्धी किसी शब्द के रूप मे प्रयुक्त अर्थ से उसका सम्बन्ध जोड़ा जाता है । अत ' सेटायर ' शब्द के उद्भव के विषय में भी मतभेद है, परन्तु इन संभीअर्थो। भे व्यग्य की प्रकृति से कुछ न कुछ साम्य अवश्य दृष्टिगत होता है । | ष ष ष ष षा ष ष ष त ष ष ति 0 त त 0 7 0 त धाडा.. साहा. 0 7 त गाव. गातरक. चराकी.. बकरी. सक বর ভার তীর বত ভাজা জর त (त মারি पल 10172 दता1& 52८1८12 00177557007 002 128८६11 ०८4 । 5211-8 * + 1170 20525 00302374112 61092 ৩০095 ८० द्द, 8 713८६५2 07441036011 212 1111148. 1४ 5€डा5 ६०0 120 € ०८ 2 7७ ०८६ 0112-४ © 0048 . গু 212 जा 0 52८1-6 ৮ 0४ 01 1८८८ 11300365592 - 231 2. [112 2১290020506 82६1768 ~ ४ 6411926: 521416६. - 22 9€ ~ 231, 232. 3. हिन्दी नाटय साहित्य में हास्य - व्यंग्य - डॉ0 सभापति मिश्र, प्र0 - 36




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