ऋग्वेद - संहिता के विभिन्न व्याख्याकारों की व्याख्या पद्धतियों का तुलनात्मक अध्ययन | Rigved Sanhita Ke Vibhinn Vyakhyakaron Ki Vyakhya Padhtiyon Ka Tulnatmak Adhyyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
70 MB
कुल पष्ठ :
567
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)19)
वेद को विद्या भी कहते हे | वेदो मे विशाल ज्ञान की राशि विद्यमान् है। अत ज्ञान का सडग्रह-प्रन्थ
होने से इसे वेद या विद्या भी कहते हे । इसके अतिरिक्त पुराण, न्याय, मीमासा, धर्मशास्त्र, शिक्षा, कल्प,
व्याकरण, निरूक्त, छन्द ज्योतिष् ओर ऋग्, यजु, साम ओर अथर्ववेद, इन चौदह विद्याओं मे वेद की गणना
होने के कारणभी वेद को विद्या कहते है|
वेदो को मन्त्र भी कहते है- “मन्त्रा मननात् अर्थात् वेदो को मनन करने के कारण इसे 'मन्त्र' भी कहते
है | इस प्रकार आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक एव अधियज्ञपरक विचारो के मनन से वेदौ को मन्त्र
कहते हे |
वैदो को छन्दस् या “चन्द' भौ कहते हे- “छन्दासि छादनात् अर्थात् वेदमन्त्र छन्दोमय है, अत वेदो
कं छादन (आवृत, आवरण) करने से इसे छन्दस् भी कहते हे । मृत्यु से भयभीत देवताओं ने स्वय को वैदिक
छन्दो से आवृत कर लिया था या ढक लिया था अत वेदो का नाम छन्द या छन्दस् पडा। वेद के पर्याय
के रूपमे मन्त्रो के द्वारा छादन के कारण छन्दस् या चन्द शब्द का प्रयोग अनेक ग्रन्थोमे प्राप्त होता है।
अष्टाध्यायी मे “बहुल छन्दसि , सूत्र अनेक बार आया है, जिसमे छन्दसि शब्द का अर्थ वेद मे हे |
रफ के रचयिता यास्काचार्य ने (छन्द आच्छादने धातु से इस शब्द को निष्पन्न माना है | शतपथ-ब्रह्मण
ग छन्दस् शब्द का निर्वचन छन्द प्रीणने धातु से किया गया है । छन्द का अर्थ है- बन्धन | निश्चित
नियम मे बधे हुए शब्द-समूह को 'छन्दस्' कहते हे |
कुछ विद्धान् पूजा अर्थ मे पठित (छन्द या (छद् धातु से “छन्दस्' शब्द को निष्पन्न मानते हे | इनके
अनुसार वेदमनो को छन्दस्* इसलिए कहा जाता है कि इन्ही के द्वारा देवताओं की पूजा होती है, अथवा
टमारे हार पूजनीय होने के कारण भी वेद छन्दस् हे |
वेदो को (आगम' अर्थात् आगम प्रमाण या शब्द प्रमाण भी कहते हे आगम शब्द मे आ का अर्थ है-
मर्यादा, सीमा, गम का अर्थ हे- मन्त्रो के अर्थ का बोधक । इस प्रकार जो ग्रन्थ सब ओर से एेहिक तथा
आमुष्मिक सुख की प्राप्ति के साधनभूत उपायो का ज्ञान करावे उसे आगम या शब्द प्रमाण कहते हे ।
वेदों को “निगम” भी कहते है, निगम शब्द मे 'नि' का अर्थ हे निश्चयपूर्वक या निश्चित জন তি, गम का
अर्थ है-- मन्त्रों के अर्थ का बोधक। इस प्रकार जो ग्रन्थ निश्चित रूप से या निश्चय पूर्वक ऐहिक तथा
अमुष्मिक सुख की प्राप्ति के साधनभूत उपायो का ज्ञान या बोध कराये उसे 'निगम' कहते है।
'आगम' और निगम दोनो शब्द पद-रचना एव अर्थ की दृष्टि से लगभग समान ही है। अन्तर मात्र 'आ'
और “'नि' उपसर्गों का है। यास्काचार्य ने निरूक्त मे जितने भी उदाहरण वेदो से दिये है उनमे प्राय सर्वत्र
निगम शब्द का प्रयोग किया है। निगम शब्द उन स्थलो पर वेद काही वाचक हे।
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