आह क्यूँ | Aha Kyun
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand): २:
आह क्यु की विजयो का संचिक्त वणेन
आह क्यू के उपनाम, व्यक्तिगत नाम अौर जन्म-स्थान के
सम्बन्ध सें जो अनिश्चितता है, उसके अतिरिक्त उसकी ,“प्रष्ठभूमि”
भी संदिग्ध है। क्योंकि वीच्वॉग के लोग न केवल उसकी सेवाओं
से लाभ उठाते थे अपितु एक विदूषक की भोति उसके साथ व्यवहार
करते थे । उन्होंने कभी भूलकर भी उसकी “पृष्ठभूमि? पर ध्यान
नहीं दिया । आह क्यू स्वयं इस विषय मेँ चुप था । केवल उस
समय जव वह किसी से मगड़ रहा होता था वह् उसे धूरकर
देखता और कहता, “हम तुमसे कहीं अच्छे खाते-पीते थे ! तू
सममता क्या है अपने आपको ९?
आह क्यू का कोई कुटुम्ब नदीं था बल्कि वी च्वांग मे एक
प्राचीन मंदिर में रहता था) उसके पास कोई स्थायी नौकरी भी
नहीं थी, बस औरों के लिये इधर-उधर के काम किया करता था ।
यदि कहीं गेहूँ कटबाने हों तो वह गेहूँ कटवा देगा और अगर
चावल पिसवाने हैँ तो वह भी पीस देगा। यदि कहीं किसी नाव
को लग्गी से चलाना हो तो बह उसे भी चला देगा । यदि काम
बहुत दिनों का हो तो वह अपने (८ स्वामी के यहां ही रहता
( ६
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