विधाता की भूल | Vidhata Ki Bhool
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
201
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५. की.
इस तनिक भी सकोच नहीं कि प्रसमचद ११३६ मे हिन्दी कथा सादित्य
की जिस स्थल पर छोड़ गये थे आज १८ वर्षों में हम उस स्थऊू से एक कदम
भी आगे नहीं बढ़ पाये है । जिस जमाने में भारतीय साहित्याकाश में
रवीन्द्र ओर शरतूचन्द्र चमक रहे थे, प्रेमचन्द ने हिन्दी कथासाहित्य को
भारत की अन्य भाषाओं के कथासाहित्य के समकक्ष छा खड़ा किया था
लेकिन आज उर्दू के कृष्णचंद, रामानन्द सागर, बंगला के विभूतिभूषण
मुकर्जी, वनफूल, दाचीनाथ, शैलजानन्द, तारादशंकर और अंगरेजी के
मुल्कराज आनन्द, भवानी भट्टाचार्य, और नाजा अहमद अव्वासं आदि
के मुकाबले मेँ हम हिन्दी के कथासाहित्य को पिछड़ा हुआ पाते हैं । जिस
जेनेन्द्र पर हिन्दी साहित्य ने कुछ भरोसा कर रखा था उसकी सृजन
शक्ति कथासाहित्य के क्षेत्र में पिछले दस वर्षों में तगण्य रही है। यशपाल
में प्रतिभा अवश्य हैं लेकिन उनके अन्दर के साहित्यिक को उनके अदर
के राजनीतिज्ञ ने दबा रखा है। यह एक दुर्भाग्य की बात है । अइक
कहानीकार की अपेक्षा ताटककार के रूप भें अधिक चसक रहे है । हिन्दी
के शेप कहानीकारों मों कोई असाधारणता नहीं है ।
सबसे अधिक भमिराक्षा की बात तो यह है कि हिन्दी के' कहानीकारों
ते अपने समय की परिस्थितियों और समस्याओं में तनिक भी दिलचस्पी
नहीं खटी । भावनाओं से हीन, मु्दादिरु कौ तरट्, युगान्तरकारी घटनाओं
को वे तटस्थ की तरह देखते रहे । इधर हमारा देश विषम परिस्थितियों
से गुजरा है । युद्ध के कारण उत्पन्न विषमता, बंगारू का अका, सत् ५२
का आन्दोलन, हिन्दू -मुसलिम हत्याकांड, स्वतंत्रा प्राप्ति आदि ऐसी घटताएँ
है जिसने किसी त किसी रूप से प्रत्येक भारतीय के जीवनक्रम पर महत्वपूर्ण
प्रभाव डाला है। विहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि हिन्दी मावाभाषी प्रदेशो
पर उन घटनाओं की सबसे गहरी प्रतिक्रियाएँ हुई थीं। लेकिन जहाँ अंगरेजी
में बंगाल के अकाल, युद्ध का प्रभाव, और ४२ के आन्दोलन पर पटना में
शिक्षा-प्राप्त भवानी भट्टाचाये कृत 00 क्क प्र 82605 (কজলী),
बंगला में ४२ के आन्दोलन पर पूणिया-सिवासी श्चीमाथ भावुरी कृत
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