आधुनिक कवि | Adhunik Kavi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
141
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न र © রস
उपयोगिता के साथ अपना सौन्दर्य संगीत भी खो बैठते हैं, उन्हें सजाने की
ज़रूरत पड़ती है। नवीत आदर्श और विचार अपनी ही उपयोगिता के कारण
संगीतमय एवं अलंकृत होते हैं। क्योंकि उनका रूपचित्र अभी सद्य होता है
और उनके रस का स्वाद नदीन! मधुरता मृदुता सी तुम प्राण, न जिसका
स्वाद स्पर्श कुछ ज्ञातः उनके लिए भौ चरिताथं होता है । इसीसे उनकी अभि-
व्यंजना से अधिक उनका भावतत्व काव्यगौरव रखता है।
'तुम वहन कर सको जन मन में मेरे विचार
वाणी मेरी, चाहिए तुम्हें क्या अलंकार
से भी मेरा यही ग्रभिप्राय है कि संक्रांतियुग की वाणी के विचार ही उसके
अलंकार हैं। जिन विचारों की उपयोगिता नष्ट हो गई है, जिनकी ऐति-
हासिक पृष्ठभूमि खिसक गई है, वे पथराए हुए मृत विचार भाषा को बोभिल
बनाते हैं। नवीन विचार और भावनाएँ, जो हृदय की रस-पिपासा को मिटाते
हैं, उड़ने वाले प्राणियों की तरह, स्वयं हृदय में घर कर लेते हैं। সাল নাঈ
काव्य की भाषा अपने नवीन आदर्शों के प्राण-तत्व से रसमयी होगी, नवीन
विचारों के ऐश्वर्य से सालंकार, और जीवन के प्रति नवीन अ्रनुराग की दृष्टि
से सौन्दर्यमयी होगी । इस प्रकार काव्य के अलंकार विकसित ग्रोर सांकेतिक
हो जाएँगे ।
छायावाद इसलिए अधिक नहीं रहा कि उसके पास, भविष्य के लिए
उपयोगी, नवीन आदर्शों का प्रकाश, नवीन भावना का सौन्दर्य-बोध, और
नवीन विचारों का रस नहीं था। वह काव्य न रह कर केवल ग्रलंकृत संगीत
बन गया था! द्विवेदी युग के काव्य की तुलना में छायावाद इसलिए आशु-
निक था कि उसके सौन्दर्यबोध और कल्पना में पाश्चात्य साहित्य का पर्याप्त
प्रभाव पड़ गया था, और उसका भाव शरीर हिवेदी युग के काव्य की परंपरा-
गत सामाजिकता से पृथक् हो गया था। कितु वह नए युग की सामाजिकता
और विचारधारा का समावेदा नहीं कर सका था! उसमे व्यावसायिक क्रांति
और विकासवाद के बाद का भावना-वैभव तो था, पर महायुद्ध के बाद की श्रन्न-
बस्त्र' की धारणा (वास्तविकता ) नहीं आई थी। उसके हासअश्रु आशा5कांक्षा
खाद्यमधुपानी' नहीं बने थे। इसलिए एक ओर वह नियगूढ़, रहस्यात्मक,
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