आधुनिक हिंदी काव्य और कवि | Adhunik Hindi Kavya Aur Kavi

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Adhunik Hindi Kavya Aur Kavi by रामचन्द्र तिवारी - Ramchandra Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गया 1 फिर भी धीधर परठक और जगमोहन सिंह के क्र अवर्तित काव्य की यह रूमानी प्रवृत्ति सुकुद्घर पाण्डेय और सेथिलीवरसणा पुप्त की कुछ कह्पनानय झंतर्भाव-व्यज्ञक कविताओं में सास लेती रही है और झागे सलकर छायावादी युग में तो यहू काव्ण की प्रधान शावसुमि के रूप में सान्य हुई 1 सभ १९६१४ ई० तक सध्यवर्गीय झअसन्तोप निश्चित सामाजिक झाधिक मौर राजनेतिक लक्ष्यों को हृष्टि में रखकर पूर्ण विकसित राष्ट्रीय झाम्दोलत का रूप ग्रहुस कर चुका था किन्तु श्रंग्रेंजों की प्रभुमता के रहते हुए हम लिसी भी क्षेत्र मे झ्रासूल परिवर्तन तहीं कर सकते थे । सामाजिक जीवन में हुम सशुल नेतिकता आदर्शवादिता और सुधार को प्रवृत्ति थे अधिक झागें नहीं बढ सकते थे । राजनेतिक जीवन की सारी सक्रियता सग्रेजी शासन के विधटन में लगी हुई थी । आर्थिक विकास के लिए विदेशी वस्तुभ्नो के बहिष्कार से बडी दूसरी थोजना हम नहीं सोच सकते थे । इन योजनांओं को जीवन के व्यावहारिक घरातल पर उतारने के लिए कर्मठ व्यक्तियों की आवश्यकता थी । इसीलिए द्िवेदी-युगीन हित्दी-काव्य से प्रबन्धों के माध्यम से शील की प्रतिष्ठा का बहुत बडा प्रयरन हुमा । पुरुष पात्र सुवारवादी लोक-सेवक आर कर्मठ चित्रित किये गये । नारियों आदर्श वीर क्षत्राणिगों और सतियों के रूप में प्रस्तुत की गयी । श्रमेक पौरासिक एवं ऐतिहासिक चरि्तिनायकों की स्रदातारणा करके उनके माध्यम से शील की प्रतिष्ठा ट्िंवेदी-युंग को उपलब्धि माती जाँ सकती है । जीवन कितना ही विचित्र गौर रहस्यमय क्यों व हो वह झपने यथातथ्य रूप में काव्य नहीं हैं । इसीलिए द्विवेदी-युगीत तथ्यमुलक इंति- वृत्तात्मक कविता अधिक दिनों तक न चल सकी । उसके विरुद्ध प्रतिक्रिया सचिवायं हो उठी यह प्रतिक्रिया छायावादी काव्य कीं श्रनेक विशेषता को सम्भव बनाने में सहायक हुई । द्विवेदी-सुगीन जीवन-दृष्टि स्थूल सुधार- वावी थीं । उनके स्थान पर सूक्ष्म भावात्मक जीवन-दृष्टि की प्रतिष्ठा हुई । सामाजिक मेतिकतामुलक जीवन-मर्यादा के विरुद्ध व्यक्ति-स्वातान््य को न्महत्व दिया गया 4 उपकेशगभित काव्य की प्रतिक्रिया सूंगाशिकता सौर रूमासियत कक थ रद थयुमिक दवि्दी कान्य भौर कि




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