अद्वैतवाद | Adwaitwad
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
407
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गंगाप्रसाद उपाध्याय - Gangaprasad Upadhyaya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ ४२ )
परंतु नचिकेता बुद्धिमान शिष्य है। वह भोग्य पदार्थों के
नहीं चाहता । वह कहता है--
श्वेभावा मर्त्य॑स्य यदन््तकेतत, सर्वेद्धियाणां जर्यन्ति तेज: ।
पि स्व॑ः नीवितमल्पमेव, तवेव वाहास्तव नृत्तगीते ॥
( कठ १।२६ >)
कि भोग्य पदाथ तो क्षणिक हैं। में इनके लेकर क्या
करूँगा | संसार के प्रलोभन और नाच-गान केवल मौत के लिये
ह । स्थायी जीवन का इनसे कुछ भी लाभ नहीं होता। इस
लिये सुककेा सूल तत्व का उपदेश करो ।
वस्तुतः पञ ओर मनुष्य में यही भेद है । पञ्च व्त॑मान ऊ
भोगों पर दृष्टि रखता है, परंतु मनुष्य भूत और भविष्य का
भी विचार कर के अपने भविष्य के उज्ज्वल बनाना चाहता है ।
मनुष्यों में भी जे पाशविक वृत्तियों के आधीन हैं, वे
खाने-पीने की वस्तुओं के पाकर ही तृप्त द्वा जाते हैं । परंतु
उच्च श्रेणी के पुरुषों की इतने से तृप्ति नहीं होती । वह संसार के
जटिल प्रं पर सवेदा विचार करते रहते हैं । ८ मैं क्या हैँ १ ५,
“आत्मा क्या है १ ” संसार क्या है १ ” “ पहले क्या था? ”
ओर “ फिर क्या हा जायगा ? ” आदि प्रश्न उनके मस्तिष्क में
चक्र लगाया करते हैं।
प्रत्येक युग और प्रत्येक देश के मनुष्यों में मूल तत्व के
खोजने की तीत्र इच्छा पाई जाती है। भिन्न भिन्न विद्वानों त
भिन्न भिन्न प्रकार से इसको खोज की है और उनके परिश्रमों
के परिणाम भी एक नहीं हैं, तथापि उन सब में एक बात
सामान्य है अथोत् “ इन प्रश्नों के समाधान का प्रयत्न । ? यह प्रश्न
आदि सृष्टि में भी ऐसे ही गू ढ़ थे, जैसे आज हैं। दस हजार
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