शैव मत | Shaiv Mat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
96 MB
कुल पष्ठ :
349
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ ओैव मत
इस बात का समाधान करने में सहायता मिलती है कि হর জী मरुतों का पिता कहा गया
है, जिनको उसने 'प्रश्नी” (प्रृथ्वी) से उत्पन्न किया |
कुछ ऐसा जान पड़ता है कि प्रारम्भ में मस्तों की कल्पना, प्रकाश से सम्बद्ध, रक्ुकगरणों
के रूप में की गई थी, जो सब युगों में साधुजनों का संरक्षण करते हैं ' | यह कल्पना इन्डो-
यूरोपियन-काल की है; क्योकि मस्त. शरोर आवेस्ता के फ्रवशियों में और भ्रीक और रोमन
जीनियाई' मं बहुत समानता है । इन ग्रीक और रोमन “जिनियाई' की कल्पना, सर्पपारी
नवयुवकों के रूप में अथवा केवल सर्पों के रूप में की जाती थी। मझछ्तों को भी 'र्यः'
(मनुष्य), अहिमानु', अहिसुष्म', अहिमन्यु' आदि कहा गया है, * जो सब-की-सब बड़ी
अर्थपूर्ण उपाधियाँ हैं । कुड ग्रीक भी जिनको शूप60 ९९.६0.88 (संस्कृत में 'तृतपितरः)
कहते हैं, हमें मरुतों का स्मरण कराते हैं; क्योंकि 'तृतः भी एक वैदिक देवता है और
कभी-कभी मझुतों के साथ ही उसका उल्लेख होता है। धीरे-धीरे मरुतों के स्वरूप में
विकास और परिवर्तन होता रहा, जिसके फंलस्वरूप उन्हें इन्द्र जेंसे एक महान देवता
का परिचारक देवता समझा जाने लगा-जेसे ईरान में फ्रवशी अहुस्मज्दा' के परिचर,
देवता बन गये थे | इन्द्र यदि किसी प्राकृतिक शक्ति का प्रतीक है तो वह ই मंकावात
का जो दीघंकाल तक सुवा मौसम रहने के वाद पावस की जवानी में चलता है, जिसके
साथ बादलों की गरज, बिजली की चमक और मूसलधार वर्षा होती है तथा जिसके
समाप्त होने पर सूय अपने समस्त तेज के साथ गगन-पटल पर फिर निंकल आता है। चूंकि
ऐसे मंमावात में हवा का मोंका उग्र रहता है, जो अपने साथ मेघों को उड़ाये लिये चलता
है तथा अन्य कई ग्रकार से भी দানার কী सहायता करता हुआ प्रतीत होता है, अतः
मरुतों का ऐसी हवाओं के साथ अधिकाधिक सम्बन्ध होता गया, और यहाँ तक कि दोनों का
तादात्म्य हो गया। ऋग्वेदीय काल तक यह तादात्म्य हो चुका था। ऋमगेद में मरुतों
की कल्पना स्पष्ट रूप से पवन देवताओं के रूप में की गई है और अब उनको पवन देव
वायु! की संतान माना जाता है, जो स्वामाविक है। परन्तु बाद में, जब हवाओं की उत्पत्ति -
का ठीक-ठीक ज्ञान ऋषियों को हुआ, तब मरुत, जो प्रथिवी से उत्पन्न किये गये थे. रुद्र के
पुत्र कहलाने लगे; क्योंकि श्री जी० राव ने सुकाया है कि प्रथिवी पर सूर्य की किरणों का ताप
लगने - से ही हवाओं की उत्पत्ति होती हैं। मरुतों का एक अन्य नाम “सिन्घु-मातरः संभवतः
उनके ओर वर्षा के सम्बन्ध की ओर संकेत करता है |
रुद्र के रूप का एक और पहलू शेष रहता है और वह किंचित् रहस्यमय है।
ऋग्वेद के उत्तर भाग के एक सूक्त में कहा गया है कि रुद्र ने केशी के साथ “विष? पान
किया * | इस सूक्त की कठिनाई यह है कि इसमें यह स्पष्ट नहीं होता कि हम इसे एक लक्षणा
मान सके या नहीं । सायणाचार्य ने इसको लाक्षणिक रूप में लिया है, और केशी का
अर्थ जिसके केश” अर्थात् किरणें हो--यानी सूरयः किया है । इसमें उन्होंने यास्क' का अनु-
१. डा० बानेंट : जीनियस : ए स्टडी इन इन्डो यूरोपियन साइकोलौजी; 788. १६२६; पृ० ७३१।
२. ऋ्वेद : २, १७२, १; १,६४, ८ ओर ९; ५,२३१.५; ५,६१.४ ५,५३.२; १०,७७, २ क ३।
३५ ऋग्वेद : १०, १३६ ।
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