वंश भास्कर महाचम्पू | Vansh Bhaskar mahachampu Vol. 4

Vansh Bhaskar  mahachampu  Vol. 4 by चन्द्र प्रकाश देवल - Chandra Prakash Deval

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूर तदनु भटसूर तास अभिधा भोज हु तिम। बहुरि बग्घ बलि बाल यह हि कृष्णहुद्धि नाम इम। तस अनुज नाम चाहड़ अतुल समरसिंह पुनि सुजस प्रिय । मोत्कल बहोरि याको अपर कर्मचंद्र नामहु कहिय ॥७॥ हाड़ा राजा देवसिंह का सबसे बड़ा पुत्र हरराज और उससे छोटा हत्थ था इसका दूसरा नाम हप्प हापा भी बतलाते हैं । तीसरा पुत्र सूर हुआ जो अपने नाम के अनुरूप शूरवीर था इसका अवर नाम बहीभाट भोज भी बतलाते हैं इसके बाद चौथा पुत्र बग्घ और पाँचवा बाल हुआ जिसका दूसरा नाम कृष्ण था। इससे छोटे का नाम चाहड़ था और सातवां पुत्र समरसिंह हुआ जिसे अपना यश बहुत प्रिय था। आठवें पुत्र का नाम मोत्कल जिसका अवर नाम कर्मचन्द भी कहा जाता है। दोहा जैत्रमल्ल पुनि जाहिकी अभिधा सौंड हु आस। अनुज तास गोविंद अरु कुंभपाल तिम तास॥८ ॥ सालिवाहन हु लघु सबन क्रम सह देव कुमार। जे जिन जिन रानिन जनें प्रभु सुहु सुनहु प्रकार ॥९ ॥ पहिले पंच रु जैत्र पुनि सुत रदट्टारि प्रसूत। जह्दोंनि हु चउ सुत जनें पहिलो चाहड़ पूत ॥१० ॥ पुनि मोत्कल गोबिंद पदु अनुज कुंभ अभिधान। समरसिंह अंतिम सहित दुव सुव गौड़ि निदान ॥११ ॥ राजा के नें पुत्र का नाम जैत्रमल था और इसी का अवर नाम सौंड भी था। इससे छोटा गोविन्द और ग्यारहवाँ पुत्र कुंभपाल हुआ। सबसे छोटे अर्थात्‌ बारहवें पुत्र का नाम सालिवाहन था। ये क्रमश राजा देवसिंह के बारह पुत्र हुए । हे राजा रामसिंह अब मैं यह बता रहा हूँ कि कौन सा पुत्र किस रानी से उत्पन्न था। पहले वाले पाँच और जैत्रमल ये छह पुत्र राठौड़ रानी से उत्पन्न थे। यादव वंशीय रानी से जो चार पुत्र हुए वे चाहड़ मोत्कल गोविन्द और कुंभपाल थे जबकि गौड़ वंशीय रानी से दो पुत्र समरसिंह और सालिवाहन हुए। वशभास्कर /२३९३




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