हिचकियाँ | Hichkiyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छभनन्द पुरः दिनाङ्क १ नुन, १६५५ प्रिय एवं जीकन के सब कुटु ? 1 राज दैटा तो था कुछ पढ़ने, किन्तु पद क सीन खक । यदौ वरू छि कोर पुस्तक भि नहीं उठाई । कुछ समय तक यों ही वैटा रदा । फिर कुछ” पद़ा--किन्तु परितोष नही खका। उसे भी एक ओर पटक दिया | छुत की कड़ियों पर दृष्टि जमा कर सोचता रहा छं देर पक | অন फिर “बटा' की याद आ गई | 'अपना-पराया? किताबों में उल्लाश किया; किन्तु, दुर्भाग्य से वह मिला की नहीं । दब एकाएक “बहूजी' सामने आ गई ---उन्हें भी कुछ समय तक देखा; किन्तु सम्तोष वहाँ पर भी ७ मिज्ष सका--बहाँ पर भी आात्र अनुताप एवं करुखा से रँगे पृष्ठो को देखा । बेदना दब ओर भी बढ़ी। सन कुल्लू छुब्घ सा हो गया। दुःख हृदय के बाँध को বুদ चाहर निकलने छ प्रयास कर्वे णा ¦ तच सोचा कि इस दुःख को भावना के জ্বীন में कागज ` पर क्‍यों बहा दिया जाय! शौर धस, तमी पत्र लिखने की सूक उत्पन्न हो गई । .




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