महान मनीषी | Mahan Manishi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कनफ्सियस ५ एक दिन भ्राचायं कनपुःसियस श्रपने श्रनुयायियों के साथ एक पहाड़ी इलाके में भ्रमण कर रहे थे। मार्ग चलते हुए एकाएक सब लोग रुक गये 1 उन्होने देखा कि एक समाधिस्थान के पास बेटी हई एक स्त्री करुण स्वर में विलाप कर रही है। आचार्य ने अपने एक दिष्य से कहा--“तुम उस स्त्री के पास जावार पूछो कि वह इस तरह क्यों बिलाप कर रही है? शिष्य बहाँ गया। उस स्त्री ने कहा-- में अभागिनी हूँ, इसी स्थान पर मेरे ससुर, पति और पुत्र एक बाघ के द्वारा मारे गये । इस पर द्षिष्य ने पूछा--'तो फिर क्‍यों तुम इस भयंकर स्थान में बैठी हुई हो ?” स्त्री ने उत्तर दिया--“यहाँ शासकों के अत्याचार से तो बची रहुँगी |” सारी बातें सुनकर कनफूरसियस ने अपने द्विष्यों को सम्बोधित करते हुए कहा--“प्यारे बच्चो, स्मरश रबखो, रेच्छाचारी शासक हिसक बाघ से भी बढ़कर भयंकर है 1 ईसवी सव पूर्ते ५१७ में लू राज्य के उच्चवंज्ीय दो মুত कतफूर्सियस के शिष्य हुए । उनके साथ कनफूसियस ते राजधानी की यात्रा की । वहाँ के राजकीय पुस्तकालय में उन्होंने ऐतिहासिक श्नु- सन्धान कार्य जारी रखा और इसके साथ-साथ संगीत-शासत्ष का भी अध्ययन किया । संगीत उनका श्रति प्रिय विषय था, संगीतक प्रभाव उनके जीवन पर गम्भीर रूप में पड़ा था। मधुर स्वर सुनने में नें इतने तल्‍लीन हो जाते थे कि भोजन का स्वाद तक भूल जाते थे । उन्होंने राज्यशासन की जो योजना बना रखी भ्री उसमें संगीत का भी समावेश था.। जीवन के श्रपराह् में कमफुससियत को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा । कई स्थानों में वे घूमते रहे | जहाँ-जहाँ ते जाते लोगों को सदाचार एवं सुशासन की सीख देते | उनका পরমিকাছা सम्रय अध्ययन एवं चिन्तन में व्यतीत होता | शिष्यों की संस्था मे क्रमश: बृद्धि होती गई ) जहाँ-जहाँ वे जाते उनके कुछ भप्रनुरक्त शिष्यः उनके साथ हो लेते श्रौर उसके मुख से निकले हुए एक-एक शब्द को अत्यन्त




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