प्रबंध-प्रकाश | Prabandh-Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ छ | वरना | भय जिसे किसी विपय का बोध कराना शी इट होगा, चह भाषा फी दुरुहता मे पने दिचारों को आच्ठन्न न होने देगा | बह तो बढ़िया से बढ़िया तकां को दास में छाया ताकि उसके कथन की उपयुक्तता पाननेवाले आदमी को जेंच जाय | इसके लिए जहाँ तक हो सकेगा वह सीधी जीर कारी भाषा में अपनी विचार-ंखला पिरोता जायगा | भाषा की आलंवारिकता में पढ़कर अपने विचारों के प्रभाव को कम न होने देगा | इसके प्रतिकूल जिसका लप्ष्य भाव-संचार होगा, जो रस-विशेष के प्रवाह में पाठऊ की मनोध्ृृत्ति को तल्लीव करना चाहेगा, वह तदनुकूल ही परुप दौमर शब्दावली का सदारा लेगा भोर वैसे ही भरंफारों की योजना करेगा । कवि छोग आलंकारिक भाषा का प्रयोग इसी हेतु करते हैं, पर वैज्ञानिकों फ्रों विषय-योध ही ध्येय होता है इसी से उनके निर्यंधों में सीधीसादी भीर स्वच्छ भापा पां जाती है! दसी छक्ष्य-भेट को ध्यान में रखकर निबंध के लिए भाषा का निणय करना चाहिए | / यहाँ हमें यह भी जान छेना चाहिये कि निवन्धों के कितने प्रकार होते है १ था तो विप्र के अनुसार निवनन्‍्ध अनेक प्रकार के हो सकते हैं नसे साहित्यिक, ऐतिहासिक, वेशञानिक, दार्शनिक, आलोचनात्मक भादि, किन्तु वर्णन-प्रणाली के भनुसार उनके मुज्य चार प्रकार ६--वर्णनात्मक, जाय्यानात्मक, प्याय्यात्सक्स और ताकिक | इन चार प्रकारों के अन्तर्गत प्रायः सभी विपयों के निबन्धों का समावेश हो जाता है। कसपना-सोक मे या आला के सामने मूर्तिमान दृश्य, व्यापार था विचार को यथावत्‌ चित्रित कर देना ही रेषे रेल का वणेनात्मक उद्य रता ह! ये भावात्मक भौर वोधात्मक दोनों प्रकार के हो सकते है। इनके भन्तगत इय कतु, मेरा, उत्सव, नगर, इमारत, यात्रा और डायरी आदि का শীল रहता है। इस श्रेणी के छेखों में कुशलतापूर्वक वास्तविक या काल्पनिक घटनाओं




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